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एप्पल बेर की खेती करो और तगड़ा मुनाफा कमाओ

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  एप्पल बेर की खेती एक लाभकारी और आसान बागवानी है, जो उष्णकटिबंधीय और अर्ध-शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों में अच्छी तरह से फलती-फूलती है। एप्पल बेर एक प्रकार का लाल अपूर्ण फल है, जो कश्मीर घाटी के क्षेत्र में पाया जाता है। इसके फलों को ताजगी और उत्कृष्ट रसदार गुणों के लिए पहचाना जाता है। इस फल में विटामिन सी, ए, बी, और शर्करा के साथ-साथ खनिज प्रदार्थ, जस्ता, केल्सियम आदि लाभदायक खनिज तत्व होते हैं। 1 2 एप्पल बेर की खेती करने के लिए, आपको निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए: एप्पल बेर के पौधे की व्यवस्था: आप एप्पल बेर के पौधे को सरकारी या निजी प्रमाणित पौधशालाओं से खरीद सकते हैं। 1 2 3  आप देशी बेर के बीजों से तैयार पौधे पर ग्राफ्टिंग विधि से भी एप्पल बेर का पौधा तैयार कर सकते हैं। एप्पल बेर के लिए उपयुक्त मौसम और मिट्टी: एप्पल बेर के लिए उपयुक्त मौसम उष्णकटिबंधीय और अर्ध-शुष्क और उप-आर्द्र जलवायु वाले क्षेत्रों का है।  बहुत ठंडे या सर्दी का मौसम इसके पौधे को नुकसान पहुंचा सकता है।  एप्पल बेर को उगाने के लिए आवश्यक मिट्टी में लाल दोमट, हल्की लाल-काली, बलुई, क्षारीय और लवणीय मिट्टी 5 से 9

अलसी की खेती खेती कमाए शानदार मुनाफा

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  नमस्कार, यह बिंग है। आपको अलसी की खेती के बारे में जानना  अलसी एक तिलहनी और रेशे वाली फसल है, जिसका उपयोग तेल, औषधि, औद्योगिक उत्पाद और पशुआहार के लिए किया जाता है। अलसी की खेती भारत में रबी मौसम में की जाती है, जिसके लिए ठंडे और शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है। अलसी की खेती के लिए काली भारी और दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है, जिसमें जल निकास अच्छा हो। अलसी की खेती के लिए आपको निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए: - बुवाई का समय: अलसी की बुवाई का समय अक्टूबर से नवंबर के पहले सप्ताह तक होता है। बुवाई के समय कतार से कतार की दूरी 30 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 5 से 7 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। बीज की गहराई 3 से 4 सेंटीमीटर होनी चाहिए। - बीज की मात्रा: अलसी की एक एकड़ फसल की बुवाई के लिए 12 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बीजों को बुवाई से पहले फंगस से बचाने के लिए थायराम या कैप्टान 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से मिलाकर बीजोपचार करना चाहिए। - उर्वरकों की मात्रा: अलसी की खेती के लिए निम्नलिखित उर्वरकों की मात्रा का उपयोग करना चाहिए:     - निट्रोजन: 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर