पपीता की खेती से प्रति एकड़ 6 लाख तक कमाओ

 

 

पपीते की खेती तो एक बीघा में 5 लाख रुपये तक की होगी कमाई


पपीता की खेती के लिए कितना हो मिट्टी का पीएच लेवल

वैज्ञानिक रामपाल ने बताया कि पपीते की खेती के लिए मिट्टी का पीएच लेवल 6.0 और 7.0 के बीच सबसे अच्छा होता है। जल निकासी की भी पर्याप्‍त व्‍यवस्‍थ्‍ज्ञा होनी चाहिए। अगर पपीते के खेत में 24 घंटे से अधिक समय तक पानी रुक जाता है तो पौधे मर जाता है, उसे बचाना बेहद मुश्किल हो जाता है। इसलिए पपीता की खेती के लिए किसानों को ऊंची जमीन का चयन करना चाहिए, जहां  बारिश का पानी न भरे।

खेत में पौधे लगाए, सीधे बीज की बुवाई न करें

डॉ. रामपाल ने बताया कि पपीते की खेती के लिए खेत में ऊंचे मेड़ का निर्माण करना चाहिए। पपीते की खेती करने के लिए पौधे किसी ऊंची क्यारी या गमले या पॉलीथिन बैग में तैयार कर लेने चाहिए। जहां पौध तैयार करें, वहां बीज की बुवाई से पहले क्यारी को 10 फीसदी फार्मेल्डिहाइड के घोल का छिड़काव करके उपचारित करना चाहिए। इसके बाद बीज एक सेमी गहरे और 10 सेमी की दूरी पर बोना चाहिए।

निराई-गुड़ाई और सिंचाई भी जरूरी

डॉ. रामपाल ने बताया कि गर्मियों में पपीते की फसल की हर छह से सात दिन में सिंचाई करनी होती है। सिंचाई का पानी पौधे के सीधे संपर्क में नहीं आना चाहिए। लगातार सिंचाई करते रहने से खेत की मिट्टी कड़ी हो जाती है, जिससे पौधों की वृद्धि रुक जाती है। इसलिए जरूरी है कि हर दो-तीन सिंचाई के बाद खेत की हल्की निराई-गुड़ाई की जानी चाहिए। इससे मिट्टी में हवा और पानी का अच्छा संचार बना रहता है।

कृषि विज्ञान ने बताया कि खड़ी पपीते की फसल में विभिन्न विषाणुजनित बीमारियों की रोकथाम के लिए दो प्रतिशत नीम का तेल, जिसमें 0.5 मिली प्रति लीटर स्टीकर मिलाकर एक-एक महीने के अंतर पर छिड़काव आठवें महीने तक करना चाहिए। उच्च क्वालिटी के फल एवं पपीता के पौधों में रोगरोधी गुण पैदा करने के लिए आवश्यक है कि चार ग्राम यूरिया, चार ग्राम जिंक सल्फेट, 04 ग्राम बोरान, 04 ग्राम लीटर पानी में घोलकर एक-एक महीने के अंतर पर छिड़काव पहले महीने से आठवें महीने तक करना चाहिए

पपीते के पौधों में लगने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम

पपीते के पौधों में भी कई तरह के रोग देखने को मिल जाते है, जो पैदावार को अधिक प्रभावित करते है | इसमें रिंगस्पॉट, डिस्टोसर्न, मोजैक लीफ कर्ल, एन्थ्रेक्नोज, जड़ व तना सड़न और कली व पुष्प वृंत का सड़ना आदि किस्म के रोग है, जो पपीते के पौधों पर आक्रमण कर उन्हें अधिक हानि पहुचाते है | इन रोगो की रोकथाम के लिए पौधों पर सड़न गलन को खरोच कर उस पर वोर्डोमिक्सचर के 5:5:20 अनुपात का लेप लगाना होता है | इसके अलावा अन्य रोगो से बचाव के लिए पपीते के पौधों पर डाईथेन एम्-45, 2 GM, मैन्कोजेब या जिनेव 0.2% से 0.25 % या व्लाईटाक्स 3 GM की उचित मात्रा का घोल बनाकर छिड़काव किया जाता है |


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