सोयाबीन की खेती

 


सोयाबीन की खेती कैसे होती है



सोयाबीन की खेती तिलहनी फसल के रूप में की जाती है, क्योकि इसके बीजो से अधिक मात्रा में तेल प्राप्त हो जाता है | सोयाबीन में पोषक तत्वों की भरपूर मात्रा पायी जाती है, जिस वजह से यह मानव शरीर के लिए अधिक लाभकारी होती है | इसमें 44 प्रतिशत प्रोटीन, 21 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 22 प्रतिशत वसा, 12  प्रतिशत नमी और 5 प्रतिशत भस्म की मात्रा पायी जाती है | सोयाबीन को सब्जी बनाकर खाने के लिए उपयोग में लाया जाता है, तथा दानो से निकले तेल को खाने और आयुवेदिक दवाइयों को बनाने के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है |
रक्त में उपस्थित कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को भी नियंत्रित करने के लिए भी सोयाबीन का सेवन किया जा सकता है | प्रोटीन के अलावा इसमें कई तरह के अम्ल भी पाए जाते है | इसकी खेती के लिए गर्म और नम जलवायु की आवश्यकता होती है | भारत के मध्यप्रदेश राज्य में सोयाबीन की खेती मुख्य रूप से की जाती है | यदि आप भी सोयाबीन की खेती करने का मन बना रहे है, तो इस लेख में आपको सोयाबीन की खेती कैसे करे के बारे में जानकारी दी जा रही है |


सोयाबीन की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान



सोयाबीन की अच्छी पैदावार के लिए चिकनी दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है | हल्की रेतीली मिट्टी में इसकी खेती को नहीं करना चाहिए | इसकी खेती में भूमि उचित जल निकासी वाली होनी चाहिए, तथा भूमि का P.H. मान 7 के मध्य होना चाहिए |

उष्ण जलवायु को सोयाबीन की खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है | सोयाबीन के पौधे गर्म और नम जलवायु में अधिक पैदावार देते है | इसकी खेती के लिए अधिक वर्षा की आवश्यकता नहीं होती है | सोयाबीन के पौधे सामान्य तापमान में अधिक उत्पादन देते है | इसके बीजो को अंकुरित होने के लिए 20 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है, तथा उच्च तापमान में इसके बीज अच्छे से पकते है |


सोयाबीन का बीज सबसे अच्छा 


वर्तमान समय में सोयाबीन की कई उन्नत क़िस्मों को अलग-अलग स्थान पर अधिक पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है, जो इस प्रकार है:-

क्रम संख्याउन्नत क़िस्मउत्पादन समयउत्पादन की मात्रा
1.जे.एस. 93-0595 दिन20 से 25 क्विंटल/हेक्टेयर
2.एन.आर.सी-7100 दिन35 क्विंटल/हेक्टेयर
3.एन.आर.सी-1290 दिन25 से 30 क्विंटल/हेक्टेयर
4.प्रतिष्ठा100 दिन20 से 30 क्विंटल/हेक्टेयर
5.जे.एस. 20-3485 से 90 दिन22 से 25 क्विंटल/हेक्टेयर
6.एन.आर.सी-8695 दिन25 क्विंटल/हेक्टेयर


सोयाबीन के खेत की तैयारी और उवर्रक


सबसे पहले खेत की मिट्टी पलटने वाले हलो से गहरी जुताई कर दी जाती है | इससे खेत में मौजूद पुरानी फसल के अवशेष पूरी तरह से नष्ट हो जाते है | जुताई के बाद खेत को कुछ दिन के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दे | खेत की पहली जुताई के बाद खेत में 20 से 25 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से देना होता है | इसके बाद खेत की दो से तीन तिरछी जुताई कर दी जाती है, इससे खेत की मिट्टी में गोबर की खाद अच्छे से मिल जाती है | गोबर की खाद को मिट्टी में मिलाने के पश्चात् उसमे पानी लगाकर पलेव कर दिया जाता है |

पलेव के पश्चात् जब खेत की मिट्टी सूख जाये, तब एक बार फिर से खेत की जुताई कर दे | इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाएगी | मिट्टी के भुरभुरा होने के बाद उसमे पाटा लगाकर खेत को समतल कर दे | इससे खेत में जलभराव नहीं होगा | सोयाबीन की खेती में यदि आप रासायनिक खाद का इस्तेमाल करना चाहते है, तो उसके लिए आपको प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 40KG पोटाश, 60KG फास्फोरस, 20KG गंधक और 20KG नाइट्रोजन की मात्रा का छिड़काव खेत की आखरी जुताई के समय करना होता है |


सोयाबीन के बीजो की रोपाई का सही समय और तरीका

सोयाबीन के बीजो की रोपाई बीज के रूप में की जाती है | इसके बीजो की रोपाई के लिए एक हेक्टेयर के खेत में छोटे आकार वाले दाने तक़रीबन 70KG, मध्यम आकार के 80KG, तथा बड़े आकार वाले 100KG दानो की आवश्यकता होती है | सोयाबीन के बीजो की रोपाई समतल खेत में मशीन द्वारा की जाती है | इसके लिए खेत में 30CM की दूरी रखते हुए पंक्तियों को तैयार कर लिया जाता है, तथा बीजो को रोपाई 2 से 3CM की गहराई में की जाती है |

बीज रोपाई से पूर्व उन्हें केप्‍टान, थीरम, कार्बेन्‍डाजिम या थायोफेनेट मिथीईल की उचित मात्रा का मिश्रण बनाकर उपचारित कर लिया जाता है | इससे बीज अंकुरण के समय उन्हें रोग लगने का खतरा कम हो जाता है | सोयाबीन के बीजो की रोपाई के लिए जून और जुलाई का महीना उपयुक्त माना जाता है |


सोयाबीन के खेत की सिंचाई

सोयाबीन के बीजो की रोपाई बारिश के मौसम में की जाती है, इसलिए इसकी फसल को आरम्भ की सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है | यदि बारिश समय पर नहीं होती है, और फसल में पानी की कमी लगने पर खेत में पानी लगा देना चाहिए | इसके बाद जब वर्षा का मौसम समाप्त हो चुका हो उस दौरान सोयाबीन के पौधों को सप्ताह में बार पानी अवश्य दे | इसके बाद जब पौधों पर फलिया आना आरम्भ कर दे, उस समय पौधों पर नमी बनाये रखने के लिए हल्की-हल्की सिंचाई को जरूरत के हिसाब से करते रहना होता है | इससे पैदावार अधिक मात्रा में प्राप्त होती

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