जयपुर में घूमने की जगह

 


Why Jaipur Known As Pink City: भारत (India) में घूमने के लिए बहुत सी खूबसूरत और मन को भाने वाली जगह हैं। यही कारण है कि देश ही नहीं, दुनियाभर से लोग यहां घूमने आते हैं। यहां न सिर्फ कई सारी शानदार घूमने वाली जगह हैं, बल्कि देश का खानपान और पहनावा भी लोगों के बीच काफी मशहूर है। यहां हर राज्य की सीमा बदलते ही संस्कृति और परंपरा भी बदल जाती है। भारत की संस्कृति को करीब से देखने के लिए राजस्थान एक बहुत ही बेहतरीन जगह है, यहां का शाही अंदाज और परंपरा लोगों के बीच काफी लोकप्रिय है।

राजस्थान में न सिर्फ आपको ऐतिहासिक धरोहर देखने को मिलेगी, बल्कि आप यहां स्वादिष्ट व्यंजनों का लुत्फ उठा सकते हैं। बता दें कि राजस्थान में घूमने के लिए पिंक सिटी यानी जयपुर बहुत ही बेहतरीन जगह है, लेकिन अहम सवाल ये है कि जयपुर को पिंक सिटी क्यों कहा जाता है। हालांकि, बहुत कम लोग यह जानते होंगे कि जयपुर के पिंक सिटी होने के पीछे एक ऐतिहासिक कहानी है। आइये जानें, जयपुर के पिंक सिटी बनने का इतिहास क्या है।

जानिये जयपुर शहर का इतिहास

बता दें कि कछवाहा वंश के महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने 18 नवंबर, 1927 में जयपुर को बसाया था। इस शहर को बसाने में बंगाल के वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य का बड़ा योगदान था। राजस्थान के इस शहर को चारों तरफ से सूर्य के सात घोड़ों पर आधारित 7 दरवाजों के बीच बसाया गया है। साथ ही, महाराजा सवाई जयसिंह भगवान श्री कृष्ण के भक्त थे। यही कारण है कि इन दरवाजों में से एक का नाम कृष्ण पाल रखा था, जिसे अब अजमेरी गेट कहा जाता है।

अगर बात करें कि इस शहर का नाम जयपुर कैसे पड़ा, तो इसका जवाब यही है कि शहर की स्थापना सवाई जयसिंह ने की थी। यही कारण है कि इस शहर को जयपुर कहा जाता है। वहीं, बात करें शहर के पिंक सिटी बनने की तो, माना जाता है कि इस शहर को पिंक सिटी का नाम प्रिंस अल्बर्ट ने दिया था। साल 1853 में ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ और प्रिंस ऑफ वेल्स के युवराज अल्बर्ट जयपुर आने वाले थे। ऐसे में दोनों के स्वागत की तैयारियों में जुटे महाराजा ने पूरे शहर को सजा दिया था।

पिंक सिटी बनने की वजह

युवराज अल्बर्ट के स्वागत की तैयारी करते समय महाराजा के मन में विचार आया कि शहर को एक रंग में रंगा जाए। बस फिर क्या था, उन्होंने अपने इस विचार पर आगे बढ़ते हुए परकोटे में स्थित पूरे शहर को गुलाबी रंग से सजाया। इसके बाद जब प्रिंस अल्बर्ट जयपुर पहुंचे, तो मेहमानवाजी और शहर का यह गुलाबी नजारा देख हैरान रह गए और उनके मुंह से पहला नाम पिंक सिटी निकला। तब से आज तक जयपुर को पिंक सिटी कहा जाता है। जयपुर में घूमने के लिए जगह- आमेर किला, हवा महल, जंतर-मंतर, नहरगढ़ किला, अल्बर्ट हॉल संग्रहालय, जल महल आदी।


हवा महल जयपुर शहर के बीचों-बीच बड़ी चौपड़ में स्थित है। महाराजा सवाई प्रताप सिंह ने इसे 1799 में बनवाया था। यह बिना नींव की विश्व की सबसे ऊंची इमारत है। 5 मंजिला इस महल में 953 छोटी-छोटी खिड़कियां या झरोखे हैं।

इन झरोखों में से बहती  हवा इस महल को हवादार और ठंडा बनाए रखती है। हवामहल लाल और गुलाबी बालू के पत्थरों से, हिंदू और इस्लामिक शैली में बनी इमारत है।

  • प्रवेश शुल्क (एंट्री फी)- भारतीय 50 रुपये, विदेशी 200 रुपये
  • खुलने का समय- रविवार से शनिवार, सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक

सिटी पैलेस को महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा 1729 से 1732 के दौरान बनवाया गया था। महाराजा के मुख्य वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य ने सिटी पैलेस को वास्तुशास्त्र के अनुरूप तैयार किया। महल के प्रवेश द्वारों को ‘पोल’ कहा जाता है।

महल की दीवारों और द्वारों को मुगल शैली के अनुसार विभिन्न प्रकार के चित्रों, जालीदार नक्काशी और शीशों से सजाया गया है। उदय पोल, जलेब चौक, त्रिपोलिया गेट और वीरेंद्र पोल यहां के कुछ प्रसिद्ध द्वार हैं।

महल के अंदर कई संरचनाएं हैं जैसे कि दीवान-ए-खास, चंद्र महल, मुबारक महल और गोविंद देव जी मंदिर। फिलहाल चंद्र महल को एक संग्रहालय का रूप दिया गया है जहां पर अलग-अलग प्रकार के हस्तशिल्प, वस्त्र और पुराने समय की कलाकृतियां रखी गई हैं।

  • प्रवेश शुल्क (एंट्री फी)- भारतीय 190 रुपये, विदेशी 500 रुपये
  • खुलने का समय- रविवार से शनिवार, सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक

जंतर मंतर कई अलग-अलग संरचनाओं का एक सम्मिलित रूप है। हर संरचना की कोई ना कोई खास खगोलीय विशेषता या उपयोगिता है।

भारत के किन-किन शहरों में जंतर-मंतर है? 

1724 से 1730 के दौरान महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने 5 ऐसी संरचनाओं का निर्माण करवाया जो कि उत्तर भारत के नई दिल्ली, जयपुर, उज्जैन, मथुरा और वाराणसी में स्थित हैं। पहला जंतर मंतर दिल्ली में 1724 में बनाया गया और सबसे अंत में 1738 में जयपुर के जंतर मंतर का निर्माण हुआ। मथुरा के जंतर मंतर के अलावा बाकी सभी आम जनता के लिए खुले हुए हैं। मथुरा का जंतर मंतर एक खंडहर बन चुका है।

जयपुर का जंतर मंतर क्यों प्रसिद्ध है?

महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा बनवाए गए पांच जंतर मंतरों में से एक जयपुर का जंतर मंतर सबसे विस्तृत है। इसमें 19 खगोलीय यंत्र शामिल है जिनमें से एक विश्व की सबसे बड़ी पत्थर की सूर्य घड़ी है। यह यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों में शामिल है।

यदि आप यहां घूमने जाएं तो एक गाइड साथ लेना बेहतर रहेगा जिससे आप ये समझ पाएंगे कि सारे यंत्र किस प्रकार काम करते हैं। यह जंतर मंतर सिटी पैलेस के नजदीक ही त्रिपोलिया बाजार में स्थित है।

  • प्रवेश शुल्क (एंट्री फी)- भारतीय 50 रुपये, विदेशी 200 रुपये
  • खुलने का समय- रविवार से शनिवार, सुबह 9 बजे से शाम 4.30 बजे तक

वेल्स के राजकुमार अल्बर्ट एडवर्ड के 1876 में भारत दौरे के वक्त अल्बर्ट हॉल की नींव रखी गई। आर्किटेक्ट सैमुएल स्विंटन जैकब द्वारा 1887 में इसका निर्माण कार्य पूरा करवाया गया। यह राम निवास बाग में स्थित है और इसे गवर्नमेंट सेंट्रल म्यूजियम भी कहा जाता है। 

यहां आपको कई प्रकार की कलाकृतियां, मूर्तियां, बर्तन, आभूषण, वस्त्र इत्यादि सामान देखने को मिलेगा। शाम को रंग बिरंगी रोशनी में नहाया हुआ अल्बर्ट हॉल म्यूजियम बेहद खूबसूरत दृश्य पेश करता है। आपको इस वक्त इसकी एक झलक जरूर देखनी चाहिए।

  • प्रवेश शुल्क (एंट्री फी)- भारतीय विद्यार्थी 20 रुपये, अन्य भारतीय 40 रुपये, विदेशी विद्यार्थी 150 रुपये, अन्य विदेशी 300 रुपये।

बिरला मंदिर 1988 में बिरला परिवार द्वारा बनवाया गया था। जिस जमीन पर यह मंदिर बना है वह जमीन जयपुर के राजा द्वारा एक रुपए की कीमत पर इसके निर्माण के लिए दान दी गई थी।

यह मंदिर तिलक नगर में जवाहरलाल नेहरू मार्ग पर स्थित है।

भगवान लक्ष्मी नारायण को समर्पित यह मंदिर अपनी खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध है। सफेद संगमरमर से बने इस मंदिर के चारों तरफ सुन्दर बगीचा है। जन्माष्टमी के त्योहार पर इस मंदिर को विशेष रूप से सजाया जाता है और बहुत धूमधाम से यहां पर यह उत्सव मनाया जाता है।

यह एक प्राचीन हिंदू तीर्थ स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। इस मंदिर का निर्माण दीवान राव कृपाराम द्वारा 18वीं शताब्दी में करवाया गया जो महाराजा सवाई जयसिंह के लिए कार्य करते थे।

यहां कई पवित्र कुंड और प्राकृतिक झरने हैं। यह मान्यता है कि यहां पर गलतव् नाम के एक संत ने आजीवन तपस्या की।

उनकी श्रद्धा से प्रसन्न होकर भगवान उनके सामने प्रकट हुए और इस स्थान को भरपूर जल का आशीर्वाद दिया। उन्हीं के नाम पर बाद में इस मंदिर का नाम पड़ा।

यहां आस-पास बहुत से बंदर हैं इसलिए यदि आप यहां जाएं तो अपने सामान का खास ध्यान रखें और मंदिर के आसपास अपने हाथों में कोई खाने पीने का सामान ना रखें।


आमेर के किले का निर्माण महाराजा मानसिंह द्वारा 1592 में करवाया गया। यह बहुत ही पुराना किला है जो बाहर से देखने में शायद साधारण सा लगे पर अंदर से बेहद खूबसूरत और भव्य है। जयपुर शहर से तकरीबन 11 किलोमीटर दूर स्थित होने के वजह से यहां पहुंचने का सबसे बढ़िया तरीका है टैक्सी या ऑटो रिक्शा। 

पीले और गुलाबी बालू पत्थर और सफेद संगमरमर से बने इस किले में दीवान-ए-आम, शीश महल, सुख महल आदि शामिल हैं। विदेशी आक्रमण और समय की मार के बावजूद यह किला आज भी एक मजबूत और शानदार इमारत के रूप में खड़ा है।

जयगढ़ किला

जयगढ़ किला जयपुर शहर से तकरीबन 15 किलोमीटर दूर आमेर रोड पर ‘चील का टीला’ नाम की पहाड़ी पर स्थित है। इस किले का निर्माण कार्य भी महाराजा जयसिंह द्वितीय द्वारा 18वीं शताब्दी में करवाया गया था। यह किला तकरीबन 3 किलोमीटर लंबे और 1 किलोमीटर चौड़े क्षेत्र में फैला हुआ है। जैवाना तोप के लिए प्रसिद्ध यह किला लोगों में आकर्षण का केंद्र है। यहां के संग्रहालय में आपको बहुत सी कलाकृतियां, चित्र, कालीन, अस्त्र-शस्त्र आदि देखने को मिल जाएंगे। 

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यहां की एक खुफिया सुरंग इस किले को आमेर के किले से जोड़ती है।






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