दलहन की फसलों से कमाए मुनाफा

 

दलहनी फसलें

दलहन की खेती हालांकि रबी और खरीफ दोनों सीजन में होती है, रबी के सीजन में कुल उत्पादन में 60 फीसदी हिस्सा दलहन का ही होता है. देश में छह प्रमुख दाल उत्पादक राज्यों में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश शामिल है. दालों के कुल उत्पादन में इन राज्यों की हिस्सेदारी करीब 80 फीसदी है

हाल ही में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री ने भारत में दलहन/दालों का उत्पादन बढ़ाने के लिये अपनाई जा रही व्यापक रणनीतियों के विषय में राज्यसभा में एक लिखित जवाब में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान की।

  • इन जानकारियों में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (National Food Security Mission- NFSM)- दलहन के उद्देश्य, जिसमें उत्पादकता में वृद्धि करना तथा कृषि क्षेत्र में धारणीय प्रथाएँ सुनिश्चित करना है, पर प्रकाश डाला गया।
  • दालों के बढ़ते दाम के बीच पढ़‍िए भारत में दलहन फसलों की उपेक्षा की पूरी कहानी

    Pulses Production: आजादी के बाद भारत में दलहन फसलों की बुवाई का क्षेत्र गेहूं से डबल था, अब क्या है हाल? जनता की थाली में कैसे कम होती गई दाल. हम हैं दुन‍िया के सबसे बड़े दाल उत्पादक फ‍िर भी क्यों दालें इंपोर्ट करने पर हैं मजबूर. कैसे गलेगी आत्मन‍िर्भरता की दाल? इन सभी सवालों का यहां म‍िलेगा जवाब

  • दलहनी फसलें

    दलहन या दलहनी फसलों के बारे में सभी जानते हैं. जिन फसलों या अन्न से दालें बनती हैं उसे दलहनी फसलें कहते हैं. इन फसलों की बुआई रबी और खरीफ दोनों मौसमों में की जाती है. देश में चना, मसूर, उड़द, मूंग, अरहर, राजमा, जैसी बहुत सी फसलें दलहनी फसलें होती हैं.

    दलहनी फसलों का पर्यावरण में योगदान

    दलहनी फसलें अच्छी उपज के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी अनुकूल होती हैं. इनकी खेती से मिट्टी की निचली सतह में नाइट्रोजन के स्तर में वृद्धि होती है, क्योंकि दलहनी फसलों की जड़ों में राइजोबियम बैक्टीरिया पाए जाते हैं. इन फसलों की खेती करने से अनावश्यक रुप से खेत में उगने वाले खरपतवार की मात्रा में भी कमी आती है. इन फसलों में सिंचाई की भी अधिक आवश्यकता नहीं पड़ती, 2- 3 बार की सिंचाई भी पर्याप्त होती है. इसके साथ-साथ मिट्टी की उर्वरा शक्ति बनाए रखने में मदद मिलती है.

    इसके अलावा दलहनी फसलों में अधिक उर्वरक और कीटनाशक की भी आवश्यकता नहीं होती. दरअसल, दलहनी फसलों की जड़ों में ग्लोमेलिन प्रोटीन पाया जाता है जो मिट्टी के कणों को जोड़े रखता है. जिसके कारण मिट्टी का क्षरण नहीं होता, जल संचयन क्षमता बढ़ती है और मिट्टी का पीएच मान संतुलित रहता है.

    फसल चक्र को बढ़ावा मिलता है

    लगातार अनाज प्राप्त करने के लिए एक ही तरह की फसलों की बुआई करते रहने से मिट्टी की उपजाऊ क्षमता में कमी आती है, उनमें लगने वाले रोग और कीटों का प्रभाव अधिक रहता है. लेकिन दलहनी फसलों की बुआई करने से खेतों की बुआई में परिवर्तन आता है और फसल चक्र लागू होता है. 

  • जुलाई माह में केवल इन तीन दालों की करें खेती, लंबे समय तक नहीं पड़ेगी कमाने की जरुरत

    जुलाई महीना दाल की खेती के लिए सबसे सही है. किसान इससे साल में अच्छी कमाई कर सकते हैं. तो आइए इसके बारे में विस्तार से जानें.दाल की खेती किसानों के लिए कमाई का बेहतर जरिया बन सकती है. जुलाई महीने में कई प्रकार की दालों की खेती की जा सकती है. खास बात यह है कि बुवाई के बाद दाल को तैयार होने में ज्यादा समय भी नहीं लगता है. बेहतर क्वालिटी के दाल लगभग तीन से चार महीने में तैयार हो जाती हैं. आज हम आपको यह बताएंगे कि जुलाई माह में कौन-कौन सी दालों की खेती की जा सकती है. वहीं, किसान को उनकी खेती से कितना मुनाफा हो सकता है.


मूंग दाल की खेती
मूंग दाल की खेती

मूंग दाल की खेती

बिहार के भोजपुर जिले में कृषि क्षेत्र से जुड़े व्यक्ति रंजीत कुमार बताते हैं कि वैसे तो मूंग दाल की खेती अप्रैल और मई से ही शुरू हो जाती है. लेकिन जुलाई महीना इसके लिए सबसे सही होता है. क्योंकि इस माह में बरसात के चलते पानी की समस्या नहीं होती है. मूंग दाल की बीज को जून के आखिरी व जुलाई के पहले हफ्ते में बोया जाता है. अगर मौसम का हाल सही रहा तो मूंग दाल को तैयार होने में 60-70 दिनों का समय लगता है. सितंबर और अक्टूबर के बीच इसकी तुड़ाई होती है. दो एकड़ में कम से कम 10 क्विंटल तक मूंग दाल का उत्पादन होता है. वहीं, इसकी खेती में खर्च लगभग सात से आठ हजार रुपये होता है. मूंग दाल का एमएसपी 8,558 रुपये प्रति क्विंटल है. ऐसे में आप अंदाजा लगा सकते हैं कि इससे महज तीन महीने में कितनी कमाई हो सकती है. प्रमुख तौर पर मूंग दाल की खेती मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार और उत्तराखंड में होती है.


उड़द दाल

जुलाई में उड़द दाल की खेती भी की जा सकती है. यह भारतीय खाद्य पदार्थों में व्यापक रूप से प्रयोग होने वाली दाल है. यह दाल लगभग 60-90 दिन में तैयार होती है. रंजीत बताते हैं कि वैसे तो उड़द दाल की खेती ज्यादातर फरवरी और मार्च महीनों में की जाती है. लेकिन कुछ क्षेत्रों में यह दाल खरीफ और रबी सीजन में भी उगाई जा सकती है. उड़द दाल के लिए 25-35 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान सही होता है. यह दाल भारी बारिश वाले क्षेत्रों में अच्छी तरह से उगाई जा सकती है. अगर मौसम का हाल सही रहा है तो एक एकड़ में लगभग सात क्विंटल उड़द दाल का उत्पादन लिया जा सकता है. वहीं, उड़द दाल की एमएसपी 6,950 रुपये प्रति क्विंटल है. ऐसे में आप कमाई का अंदाजा लगा सकते हैं. भारत में प्रमुख तौर पर उड़द दाल की खेती उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, गुजरात और पंजाब जैसे राज्यों में होती जाती है.



अरहर की खेती

अरहर भी सबसे पसंदीदा दालों में से एक है. इसकी खेती भी जुलाई माह से शुरू की जाती है. बुवाई के बाद अरहर दाल को तैयार होने में लगभग 100-120 दिन का समय लगता है. अरहर दाल की खेती पानी की सुचारू आपूर्ति और अच्छी ड्रेनेज क्षमता वाली मिट्टी पर आधारित होती है. बुवाई के बाद खेत में नियमित रूप से पानी देना आवश्यक है. इससे उत्पादन भी ज्यादा मिलता है. रंजीत बताते हैं कि अरहर दाल की खेती के लिए 20-35 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त होता है. एक एकड़ में लगभग भारत में, आमतौर पर अरहर दाल का उत्पादन 6-8 क्विंटल (600-800 किलोग्राम) के बीच मिल सकता है. हालांकि, संख्या मौसम पर निर्भर करती है. वहीं, अरहर दाल का एमएसपी 7000 रुपये प्रति क्विंटल है. जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि अरहर दाल की खेती से कितनी कमाई हो सकती है. वैसे तो भारत के लगभग सभी इलाकों में अरहर दाल की खेती होती है लेकिन प्रमुख तौर पर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और बिहार में इसका उत्पादन होता है.

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