कम लागत से करे खीरे की खेती और कमाए मुनाफा

 खीरे की खेती


भारत में खीरा एक महत्वपूर्ण और फायदेमंद कृषि फसल है, जो पूरे देश में उगाया जाता है। हालाँकि पहले लोगों ने सोचा था कि खीरे की खेती केवल गर्मियों में ही संभव है, आज की तकनीक और जलवायु बदलते मौसम ने दिखाया है कि वर्षा, शीतकाल और बसंत-ग्रीष्म जैसे समय पर भी खीरे की खेती की जा सकती है।

खेत में खीरे को उगाने का सही समय चुनना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे फसल की गुणवत्ता और उत्पादकता पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। खीरे की वैज्ञानिक खेती में इसे 60 से 80 दिनों में जीवनकाल पूरा होता है, इसलिए इसे “छोटी फसल” कहा जाता है। यह खासकर उन किसानों के लिए अच्छा है जो जल्दी उत्पादन करके अपना निवेश वापस करना चाहते हैं।

खीरा खाने में स्वादिष्ट होता है और बहुत पौष्टिक है। इसमें प्रोटीन, विटामिन C, आयरन और कार्बोहाइड्रेट होते हैं, जो पाचन शक्ति को बढ़ाते हैं। खेत में इस समय पर्याप्त पानी होता है, इसलिए खीरे की फसल अधिक प्राप्त होती है, विशेष रूप से वर्षा ऋतु में। इसलिए, खीरे की खेती के लिए यह समय सबसे अच्छा रहता है और किसानों को अधिक मुनाफा मिलता है।

खीरे की खेती में सफलता पाने के लिए समयबद्ध रूप से खेती की तैयारी करनी चाहिए. इसमें सही बीज का चयन, उचित बीज बोने की प्रक्रिया, खेत में उर्वरकों का सही उपयोग और उचित जलवायु का ध्यान देना चाहिए। एक विशेषज्ञ किसान के रूप में, यही जानकारी किसानों को उनके खेतों में खीरे की सफल खेती करने में मदद करती है।


खीरे की आधुनिक खेती कैसी करें?

खीरे की आधुनिक खेती करने के लिए विज्ञानिक तरीके का प्रयोग करना महत्वपूर्ण है जिससे खीरे की उत्पादनता और गुणवत्ता में सुधार हो सके।

आजकल खीरे की खेती के लिए ग्रीनहाउस और पॉलीहाउस के सहायता से खेती का अधिकतम उत्पादन संभव हो रहा है। इससे खीरे की खेती को कम जगह पर भी उत्तर्त्तीत प्रदर्शन करने में सक्षम है और खीरा फसल को 2 से 4 दिनों तक भंडारण कर सकते हैं। पंजाब, झारखंड, उत्तर प्रदेश, और महाराष्ट्र में खीरे की खेती की बहुत अच्छी मांग है।

खीरे की आधुनिक खेती को शुरू करने के लिए निम्नलिखित जानकारी ध्यान में रखें:

1. भूमि चयन: खीरे की खेती के लिए मिट्टी के चयन में ध्यान देना अत्यंत महत्वपूर्ण है। खीरी की उन्नत खेती के लिए लोम (लोम) और सैंडी लोम (बालूई लोम) भूमि अधिक उपयुक्त होती है। भूमि का उपयुक्त और सही उच्चता पर्वतीय क्षेत्रों में भी खीरे की खेती का उत्तर्त्तीत उत्पादन कर सकते हैं।

2. बीज चुनाव: आधुनिक खेती के लिए उच्च उत्पादकता और उत्तम गुणवत्ता वाले बीजों का चयन करें। वैज्ञानिक अध्ययन और खेती के विशेषज्ञों से परामर्श करके उच्च उपजाऊ वार्षिक या हाइब्रिड बीजों को चुनें।

3. जलवायु विवेचना: खीरे की खेती के लिए उच्च तापमान और नियमित बरसाती वर्षा आवश्यक होती है। खीरे की फसल बढ़ने के लिए 13-18 डिग्री सेल्सियस तापमान अनुकूल होता है और पौधों को विकसित होने के लिए 18-24 डिग्री सेल्सियस तापमान अधिक उपयुक्त होता है।

4. प्रकृतिक खाद: खीरे की उन्नत खेती में कार्बनिक खाद का प्रयोग करना फायदेमंद होता है। खेत की तैयारी के समय खेत में सड़े हुए गोबर को मिश्रण में डालने के साथ ही खेत में 40-50 किलोग्राम नाइट्रोजन, 70 किलोग्राम पोटाश, और 60 किलोग्राम फॉस्फोरस जैसे महत्वपूर्ण तत्वों को डालकर उपजाऊ खेती को प्रोत्साहित किया जा सकता है।

5. समयबद्ध बीज बोना: बीज बोने का सही समय चयन खेती के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। खेत में बीजों को एक सेंटीमीटर गहराई में बोना जाता है। पौधे फैलने के बीच में 50-100 सेंटीमीटर की दूरी रखना भी उत्तर्त्तीत उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण होता है।

6. प्रबंधन और देखभाल: खीरे की खेती में सफलता प्राप्त करने के लिए नियमित रूप से प्रबंधन और देखभाल करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। खेत में अशुद्धि, कीटाणु, और रोगों का नियंत्रण करने के लिए उचित कीटनाशकों का उपयोग करें। नियमित जल सिंचाई, कीटनाशकों के उपयोग का प्रबंधन, और अच्छे फसली देखभाल के माध्यम से उच्च उत्पादन को सुनिश्चित करें।

खीरे की आधुनिक खेती के इन विज्ञानिक तरीकों का प्रयोग करके, आप अपने खेत में उत्तर्त्तीत खीरे की उच्च उत्पादनता का लाभ उठा सकते हैं और इससे अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। विशेषज्ञों द्वारा सलाह लेना और नवीनतम खेती तकनीकों का अनुसरण करना खीरे की आधुनिक खेती को सफल बनाने में मदद कर सकता है।

खीरे की खेती के लिए जलवायु कैसा होना चाहिए? 

खीरे की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु का महत्वपूर्ण रूप से ध्यान रखना आवश्यक होता है। खीरे की फसल शीतोषण (गर्मियों) और समशीतोषण (बरसाती) दोनों प्रकार के जलवायु में उगाई जा सकती है।

खीरे के पौधों को फूलने के लिए उचित तापमान की आवश्यकता होती है। खीरे के फूलने के लिए 13 से 18 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान अनुकूल होता है।

इस प्रकार के तापमान में पौधों के विकास को संतुलित रूप से समर्थित किया जा सकता है। पौधों के बढ़ने के लिए आवश्यक तापमान 18 से 24 डिग्री सेल्सियस तक होता है। इसलिए, उच्च उत्पादन के लिए यह तापमान उचित होता है।

खीरे की खेती के लिए भूमि का चयन भी महत्वपूर्ण है। खेती के लिए सभी तरह की मिट्टी में खीरे की खेती की जा सकती है, लेकिन लोम (दोमट) और सैंडी लोम (बालूई दोमट) भूमि खीरे की उन्नत खेती के लिए उत्तम होती हैं।

इन मिट्टी के लिए पानी के संचयन की क्षमता अधिक होती है जिससे पौधों को उचित पोषण मिलता है। खीरे की खेती के लिए नदियों के फूटहिल्स (पहाड़ी क्षेत्र) भी अच्छे से उपयुक्त होते हैं।

आधुनिक खेती में खीरे की खेत के लिए जमीन में पानी निकलने का रास्ता होना भी आवश्यक है। खेत में पानी की भराई न होना चाहिए, वरना पौधों का विकास प्रभावित हो सकता है और उत्पादकता कम हो सकती है। समय-समय पर सुरक्षित और पर्याप्त सिंचाई का प्रबंधन करके उच्च उत्पादकता के लिए सही जलवायु विशेषज्ञों से सलाह लेना आवश्यक होता है।

इस रूप में, खीरे की खेती के लिए उचित जलवायु का चयन करना महत्वपूर्ण है जिससे पौधों को उत्तर्त्तीत विकास के लिए उचित माहौल मिले और खीरे की उच्च उत्पादकता संभव हो।

देसी खीरा की खेती के लिए बीज का चुनाव और खेत की तैयारी कैसे करें? देसी खीरा की खेती

देसी खीरा की खेती के लिए बीज का चुनाव:
1. देसी खीरा: देसी खीरा बीज का चयन करने के लिए आपको स्थानीय किसानों और प्राकृतिक बीजों के बीज विक्रेताओं के साथ संपर्क करना चाहिए। देसी खीरा विविधता में होता है और स्थानीय क्षेत्रों में अच्छे रूप से उगता है। इससे न केवल खेती के लिए उचित प्रकृतिक संकेत मिलते हैं, बल्कि आप एक स्थानीय जीवन पद्धति को समर्थन करने में भी मदद करते हैं।
2. हाइब्रिड खीरा: हाइब्रिड खीरे के बीजों का चयन करते समय आपको उन्नत जीवनशैली और उच्च उत्पादकता की दृष्टि से चयन करना चाहिए। हाइब्रिड बीज उच्च उत्पादकता और विषमता के लिए विख्यात होते हैं। इन बीजों का चयन करते समय बीजों के विशेषज्ञों से सलाह लेना उचित होता है। इसके लिए कृषि विज्ञान के संशोधन संस्थानों या कृषि विशेषज्ञों की सलाह लेना भी आवश्यक होता है।

खेत की तैयारी / Prepration of Land:
1. जमीन का चयन: खेती के लिए समृद्ध और उपयुक्त जमीन का चयन करना महत्वपूर्ण है। खीरे की खेती के लिए लोम और सैंडी लोम भूमि उच्च उत्पादकता के लिए उत्तम मानी जाती हैं। इन भूमियों में पानी के संचयन की क्षमता अधिक होती है जिससे पौधों को उचित पोषण मिलता है। इसके लिए जलवायु विशेषज्ञों से सलाह लेना आवश्यक होता है।
2. जुताई का काम: खेत की तैयारी में जुताई का काम महत्वपूर्ण होता है। जुताई के लिए सबसे पहले भूमि को पलटने वाले हल से अच्छे से जुताई करें। जुताई के लिए 2 से 3 बार समान्य हल या कल्टीवेटर का उपयोग करें ताकि भूमि उचित रूप से तैयार हो सके। आखरी जुताई के बाद, खेत में 200 से 300 क्विंटल जैविक खाद (सड़े हुए गोबर) डालने से पौधों को उचित पोषण मिलता है। इसके अलावा, 40 से 50 किलोग्राम नाइट्रोजन, 70 किलोग्राम पोटाश, 60 किलोग्राम फास्फोरस जैसे तत्वों को खेत तैयार करते समय डालें।

3. नालियों का बनाना: खेत में पानी निकलने के लिए नालियाँ बनाना भी महत्वपूर्ण होता है। खेत में पानी जमा नहीं होना चाहिए, वरना पौधों का विकास प्रभावित हो सकता है और उत्पादकता कम हो सकती है। समय-समय पर सुरक्षित और पर्याप्त सिंचाई का प्रबंधन करने से उच्च उत्पादकता होती है।

इस रूप में, देसी खीरा की खेती के लिए उचित बीज का चयन और खेत की तैयारी करना खेती में उच्च उत्पादकता के लिए महत्वपूर्ण है। उपरोक्त सलाहों का पालन करके आप एक सफल खीरे की खेती शुरू कर सकते हैं।

खीरा लगाने का सही समय क्या है? 

खेती करने की लिए हमें यह जानना बहुत ही ज़रूरी होता है, कि हमें अपने खेतो में कितने quantity में बीजो को  लाए तथा किस वक्त लगाये ता की हम अच्छे फसल की production कर सकें.

बीज बोये जाने के ठीक 20-25 दिन बाद, जब पौधे बढ़ने लगते हैं, तब निराई-गुडाई करने से पौधों की अच्छी वृद्धि होती है। इससे फलों की भी अच्छी और अधिक उत्पादन होता है। खेतों में विशेष पौधे, जो खीरे के पौधों की वृद्धि को रोकते हैं, को खेत से निकाल देना चाहिए।

रोग नियंत्रण / Common Diseases

खीरे की खेती में पाए जाने वाले कुछ आम रोग निम्नलिखित हैं:

1. विषाणु रोग (Bacterial Wilt):

विषाणु रोग खीरे में आमतौर पर पाया जाने वाला रोग है, जो पौधों की पत्तियों पर प्रारंभ होता है और इसका प्रभाव फलों पर पड़ता है।
इस रोग में पत्तियों पर पीले दाग होते हैं और धीरे-धीरे पत्तियां सिकुड़ने लगती हैं। इस बीमारी का प्रभाव फलों पर भी पड़ता है, और वे छोटे और टेडी मेडी बन जाते हैं।
इस रोग को दूर करने के लिए नीम का काढ़ा या गौमूत्र में माइक्रो झाइम को मिलाकर इसे 250 मिलीलीटर प्रति पम्प फसल पर छिड़काव करना उपयुक्त हो सकता है।
2. एन्थ्रेक्नोज (Anthracnose):

यह रोग मोल्ड के कारण होता है और मौसम के परिवर्तन के कारण हो सकता है। इस रोग में फलों और पत्तियों पर दाग होते हैं।
इस रोग को दूर करने के लिए नीम का काढ़ा या गौमूत्र में माइक्रो झाइम को मिलाकर इसे 250 मिलीलीटर प्रति पम्प फसल पर छिड़काव करना उपयुक्त हो सकता है।
3. चूर्णिल असिता (Powdery Mildew):

इस रोग की वजह से फफूंदों का एक प्रकार (AeriSiphearum) होता है। यह रोग मुख्यत: पत्तियों पर होता है और यह धीरे-धीरे फूल और फलों को प्रभावित करता है।
इस बीमारी में पत्तियों के नीचे सफेद दाग होते हैं, जो धीरे-धीरे बढ़ते हैं और फूल और फलों को प्रभावित करते हैं।
नीम का काढ़ा या गौमूत्र में माइक्रो झाइम को मिलाकर इसे 250 मिलीलीटर प्रति पम्प फसल पर छिड़काव करने से इस रोग को दूर किया जा सकता है

कीट नियंत्रण (Pest Control)

1. एफिड (Aphids):

एफिड खीरे की पौधों पर हमला करते हैं, और ये पौधों के छोटे हिस्सों पर बसे रहते हैं। ये कीट पौधों से रस चूसते हैं, जिसके परिणामस्वरूप पत्तियां पीली पड़ जाती हैं।
इस कीट से बचाव के लिए नीम का काढ़ा या गौमूत्र में माइक्रो झाइम को मिलाकर इसे 250 मिलीलीटर प्रति पम्प फसल पर छिड़काव करें।
2. रेड पम्पकिन बीटिल (Red Pumpkin Beetle):

ये कीटा लाल रंग का होता है और इसका आकार 5-8 सेंटीमीटर तक का होता है। ये कीटा पौधों की पत्तियों के बीच रहकर उन्हें खाता है।
इस कीट से बचाव के लिए नीम का काढ़ा या गौमूत्र में माइक्रो झाइम को मिलाकर इसे 250 मिलीलीटर प्रति पम्प फसल पर छिड़काव करें।
3. एपिलैकना बीटिल (Epilachna Beetle):

ये कीट सभी वाइन पौधों पर हमला करते हैं। ये कीट पत्तियों पर हमला करती हैं और उन्हें नष्ट कर देती हैं।
इन कीटों से पौधों को बचाने के लिए नीम का काढ़ा या गौमूत्र में माइक्रो झाइम को मिलाकर इसे 250 मिलीलीटर प्रति पम्प फसल पर छिड़काव करें।

तुड़ाई 

बीज बुवाई के ठिक 2 महीने बाद फसल तैयार हो जाता है, और फसल के तैयर हो जाने पर 2 महिने तक हर 3 से 4 दिन के अन्तराल में फलो की तुड़ाई करें. 

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