ये खेती करलो मालामाल हो जाओगे
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भारत में जीरे की खेती |
जीरे का नाम तो आपने सुना ही होगा आज आपको जीरे की खेती के बारे में कुछ जानकारी बताते है
जीरे का वानस्पतिक नाम व पौधे की विशेषता
जीरा (वानस्पतिक नाम- क्यूमिनम सायमिनम) एपियेशी परिवार का एक पुष्पीय पौधा है। जीरा इसी नाम (जैविक नाम- क्युमिनम सायमिनम) के जैविक पौधे के बीज को कहा जाता है। यह पौधा पार्स्ले परिवार का सदस्य है। इसका पौधा 30-50 सेमी (0.98-1.64 फीट) की ऊंचाई तक बढ़ता है और इसके फ़लों को हाथ से ही तोड़ा जाता है। यह वार्षिक फसल वाला मुलायम एवं चिकनी त्वचा वाला हर्बेशियस पौधा है। इसके तने में कई शाखाएं होती हैं एवं पौधा 20-30 सेंमी ऊंचा होता है। प्रत्येक शाखा की 2-3 उपशाखाएं होती हैं एवं सभी शाखाएं समान ऊंचाई लेती हैं जिनसे ये छतरीनुमा आकार ले लेता है। इसका तना गहरे हरे रंग का सलेटी आभा लिए हुए होता है। इन पर 5-10 सेमी. की धागे जैसे आकार की मुलायम पत्तियां होती हैं। इनके आगे श्वेत या हल्के गुलाबी वर्ण के छोटे-छोटे पुष्प अम्बेल आकार के होते हैं। प्रत्येक अम्बेल में 5-7 अम्ब्लेट होती हैं।
भारत में जीरे की खेती कहा होती है
देश का 80 प्रतिशत से अधिक जीरा गुजरात व राजस्थान राज्य में उगाया जाता है। राजस्थान में देश के कुल उत्पादन का लगभग 28 प्रतिशत जीरे का उत्पादन किया जाता है तथा राज्य के पश्चिमी क्षेत्र में कुल राज्य का 80 प्रतिशत जीरा पैदा होता है लेकिन इसकी औसत उपज (380 कि.ग्रा.प्रति हे.) पडौसी राज्य गुजरात (550 कि.ग्रा.प्रति हेक्टेयर) के अपेक्षा काफी कम है।
जीरे में पाए जाने वाले पोशाक तत्व और विटामिन
जीरा एक बेहतरीन एंटी-ऑक्सिडेंट है और साथ ही यह सूजन को करने और मांसपेशियों को आराम पहुचांने में कारगर है। इसमें फाइबर भी पाया जाता है और यह आयरन, कॉपर, कैल्शियम, पोटैशियम, मैगनीज, जिंक व मैगनीशियम जैसे मिनरल्स का अच्छा सोर्स भी है। इसमें विटामिन ई, ए, सी और बी-कॉम्प्लैक्स जैसे विटामिन भी खासी मात्रा में पाए जाते हैं। इसलिए इसका उपयोग आयुर्वेद में स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम बताया गया है।
उन्नत किस्में
- आर जेड-19 : जीरे की यह किस्म 120-125 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इससे 9-11 क्विंटल तक प्रति हैक्टेयर तक उत्पादन प्राप्त होता है। इस किस्म में उखटा, छाछिया व झुलसा रोग कम लगता है।
- आर जेड- 209 : यह भी किस्म 120-125 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसके दाने मोटे होते हैं। इस किस्म से 7-8 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक उपज प्राप्त होती है। इस किस्म में भी छाछिया व झुलसा रोग कम लगता है।
- जी सी- 4 : जीरे की ये किस्म 105-110 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसके बीज बड़े आकार के होते हैं। इससे 7-9 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। यह किस्म उखटा रोग के प्रति संवेदशील है।
- आर जेड- 223 : यह किस्म 110-115 दिन में पककर तैयार हो जाती है। जीरे की इस किस्म से 6-8 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। ये किस्म उखटा रोग के प्रति रोधक है। इसमें बीज में तेल की मात्रा 3.25 प्रतिशत होती है।
- जीरे की खेती के लिए उपयुक्त समय नवंबर माह के मध्य का होता है। इस हिसाब से जीरे की बुवाई 1 से लेकर 25 नवंबर के बीच कर देनी चाहिए।
- जीरे की बुवाई छिडक़ाव विधि से नहीं करते हुए कल्टीवेटर से 30 सेमी. के अंतराल में पंक्तियां बनाकर करना चाहिए। क्योंकि ऐसा करने से जीरे की फसल में सिंचाई करने व खरपतवार निकालने में समस्या नहीं होती है।
- जीरे की खेती के लिए शुष्क एवं साधारण ठंडी जलवायु सबसे उपयुक्त होती है। बीज पकने की अवस्था पर अपेक्षाकृत गर्म एवं शुष्क मौसम जीरे की अच्छी पैदावार के लिए आवश्यक होता है।
- जीरे की फसल के लिए वातावरण का तापमान 30 डिग्री सेल्सियस से अधिक व 10 डिग्री सेल्सियस से कम होने पर जीरे के अंकुरण पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
- अधिक नमी के कारण फसल पर छाछ्या तथा झुलसा रोगों का प्रकोप होने के कारण अधिक वायुमण्डलीय नमी वाले क्षेत्र इसकी खेती के लिए अनुपयुक्त रहते हैं।
- अधिक पालाग्रस्त क्षेत्रों में जीरे की फसल अच्छी नहीं होती है।
- वैसे तो जीरे की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन रेतीली चिकनी बलुई या दोमट मिट्टी जिसमें कार्बनिक पदार्थो की अधिकता व उचित जल निकास हो, इसकी खेती के लिए सबसे उपयुक्त होती है।
- जीरे की सिंचाई में फव्वारा विधि का उपयोग सबसे अच्छा रहता है। इससे जीरे की फसल को आवश्यकतानुसार समान मात्रा में पानी पहुंचाता है।
- दाना पकने के समय जीरे में सिंचाई नहीं करनी चाहिए ऐसा करने से बीज हल्का बनता है।
- गत वर्ष जिस खेत में जीरे की बुवाई की गई हो, उस खेत में जीरा नहीं बोए अन्यथा रोगों का प्रकोप अधिक होगा।
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