- नमस्ते,।
खेती बाड़ी का मतलब है खेत में अनाज बोने का कार्य, कृषि, किसानी, या काश्तकारी³। खेती बाड़ी कृषि और वानिकी के माध्यम से खाद्य और अन्य सामान के उत्पादन से संबंधित है। कृषि एक मुख्य विकास था, जो सभ्यताओं के उदय का कारण बना¹।
आपको खेती बाड़ी के किस पहलू पर जानकारी चाहिए? मुझे आपको कुछ सुझाव देता हूं:
- **रेशम** की खेती करके लाखों कमाएं, [जानें](^1^) क्या है तरीका
- **लीची** की उन्नत किस्मों से [करें](^1^) वैज्ञानिक विधि से खेती, किसानो
पशुपालन
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पशुपालनकृषि विज्ञानकी वह शाखा है जिसके अंतर्गत पालतू पशुओं के विभिन्न पक्षों जैसेभोजन, आश्रय, स्वास्थ्य,प्रजननआदि का अध्ययन किया जाता है। पशुपालन का पठन-पाठन विश्व के विभिन्न विश्वविद्यालयों में एक महत्वपूर्ण विषय के रूप में किया जा रहा है।जिनसेन मठकोल्हापुर का प्रधान जैन मठ है यहाँ के स्वामी भट्टारक लक्ष्मीसेन है जो भारत के सबसे बड़े भट्टारक है कोल्हापुर क्षेत्र के सभी जैन (ब्राह्मण,वैश्य,क्षत्रिय,शूद्र) इनकी आज्ञा का पालन करते है
एप्पल बेर की खेती एक लाभकारी और आसान बागवानी है, जो उष्णकटिबंधीय और अर्ध-शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों में अच्छी तरह से फलती-फूलती है। एप्पल बेर एक प्रकार का लाल अपूर्ण फल है, जो कश्मीर घाटी के क्षेत्र में पाया जाता है। इसके फलों को ताजगी और उत्कृष्ट रसदार गुणों के लिए पहचाना जाता है। इस फल में विटामिन सी, ए, बी, और शर्करा के साथ-साथ खनिज प्रदार्थ, जस्ता, केल्सियम आदि लाभदायक खनिज तत्व होते हैं। 1 2 एप्पल बेर की खेती करने के लिए, आपको निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए: एप्पल बेर के पौधे की व्यवस्था: आप एप्पल बेर के पौधे को सरकारी या निजी प्रमाणित पौधशालाओं से खरीद सकते हैं। 1 2 3 आप देशी बेर के बीजों से तैयार पौधे पर ग्राफ्टिंग विधि से भी एप्पल बेर का पौधा तैयार कर सकते हैं। एप्पल बेर के लिए उपयुक्त मौसम और मिट्टी: एप्पल बेर के लिए उपयुक्त मौसम उष्णकटिबंधीय और अर्ध-शुष्क और उप-आर्द्र जलवायु वाले क्षेत्रों का है। बहुत ठंडे या सर्दी का मौसम इसके पौधे को नुकसान पहुंचा सकता है। एप्पल बेर को उगाने के लिए आवश्यक मिट्टी में लाल दोमट, हल्की लाल-काली, बलुई, क्षारीय और लवणीय मिट्टी 5 से 9
आजकल किसानों का ध्यान परंपरागत खेती से हटकर आधुनिक खेती की ओर केंद्रित हो रहा है. आधुनिक खेती के दौर में किसान अब बाजार की मांग को ध्यान में रखकर मुनाफा देने वाली चीजों की खेती करने लगे हैं. इसी के साथ किसान फल और सब्जियों की खेती करके अच्छी कमाई कर रहे हैं. यदि फलों की बात करें तो किसान फलों में अनानास की खेती करके भी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. इसकी खेती पूरे बारह महीने की जा सकती है और इसकी मांग भी बाजार में पूरे बारह महीने बनी रहती है. ऐसे में ये हर तरह से फायदे का सौदा है. भारत में कहां-कहां होती है अनानास की खेती भारत में मुख्य रूप से केरल, आंध्र प्रदेश, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल, असम और मिजोरम में अनानास उगाया जाता है. अब बिहार और उत्तर प्रदेश के किसान भी इसका उत्पादन करने लगे हैं. कुछ राज्यों में इसकी खेती 12 महीने की जाती है. अनानास के लिए उपयुक्त जलवायु अनानास की खेती के लिए नम जलवायु की आवश्यकता होती है. इसकी खेती के लिए अधिक बारिश की जरूरत होती है. इसमें ज्यादा गर्मी और पाला सहने की क्षमता नहीं होती है. इसके लिए 22 से 32 डिग्री तापमान उपयुक्त रहता है. अनानास के लिए उप
खीरे की खेती भारत में खीरा एक महत्वपूर्ण और फायदेमंद कृषि फसल है, जो पूरे देश में उगाया जाता है। हालाँकि पहले लोगों ने सोचा था कि खीरे की खेती केवल गर्मियों में ही संभव है, आज की तकनीक और जलवायु बदलते मौसम ने दिखाया है कि वर्षा, शीतकाल और बसंत-ग्रीष्म जैसे समय पर भी खीरे की खेती की जा सकती है। खेत में खीरे को उगाने का सही समय चुनना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे फसल की गुणवत्ता और उत्पादकता पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। खीरे की वैज्ञानिक खेती में इसे 60 से 80 दिनों में जीवनकाल पूरा होता है, इसलिए इसे “छोटी फसल” कहा जाता है। यह खासकर उन किसानों के लिए अच्छा है जो जल्दी उत्पादन करके अपना निवेश वापस करना चाहते हैं। खीरा खाने में स्वादिष्ट होता है और बहुत पौष्टिक है। इसमें प्रोटीन, विटामिन C, आयरन और कार्बोहाइड्रेट होते हैं, जो पाचन शक्ति को बढ़ाते हैं। खेत में इस समय पर्याप्त पानी होता है, इसलिए खीरे की फसल अधिक प्राप्त होती है, विशेष रूप से वर्षा ऋतु में। इसलिए, खीरे की खेती के लिए यह समय सबसे अच्छा रहता है और किसानों को अधिक मुनाफा मिलता है। खीरे की खेती में सफलता पाने के लिए समयबद्ध
चुकंदर की खेती चुकंदर एक ऐसा फल है, जिसका सेवन सब्जी के रूप में पकाकर या बिना पकाये ऐसे भी किया जा सकता है | चुकंदर को मीठी सब्जी भी कह सकते है, क्योकि इसका स्वाद खाने में हल्का मीठा होता है | इसके फल जमीन के अंदर पाए जाते है, तथा चुकंदर के पत्तो को भी सब्जी के रूप में इस्तेमाल करते है | चुकंदर में अनेक प्रकार के पोषक तत्व मौजूद होते है, जो मानव शरीर के लिए काफी लाभदायक होते है |डॉक्टर भी खून की कमी, अपच, कब्ज, एनीमिया, कैंसर, हृदय रोग, पित्ताशय विकारों, बवासीर और गुर्दे के विकारों को दूर करने के लिए चुकंदर का सेवन करने की सलाह देते है | चुकंदर को सलाद, जूस और सब्जी के रूप में उपयोग करते है| चुकंदर की बहुत अधिक मांग होती है, जिस वजह से किसान भाई चुकंदर की खेती कर अच्छी कमाई कर सकते है | चुकंदर की खेती कैसे होती है (Beetroot Farming in Hindi) इसके बारे में जानकारी के बाद ही लाभ प्राप्त कर सकते है , इसके अलावा चुकंदर की उन्नत किस्में कौन सी है, इसे जानकर आप अच्छी पैदावार भी कर पाएंगे | चुकंदर की खेती के लिए उपयुक्त मिटटी चुकंदर की खेती को करने के लिए बलुई दोमट मिट्टी की आ
नमस्कार, यह बिंग है। आपको अलसी की खेती के बारे में जानना अलसी एक तिलहनी और रेशे वाली फसल है, जिसका उपयोग तेल, औषधि, औद्योगिक उत्पाद और पशुआहार के लिए किया जाता है। अलसी की खेती भारत में रबी मौसम में की जाती है, जिसके लिए ठंडे और शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है। अलसी की खेती के लिए काली भारी और दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है, जिसमें जल निकास अच्छा हो। अलसी की खेती के लिए आपको निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए: - बुवाई का समय: अलसी की बुवाई का समय अक्टूबर से नवंबर के पहले सप्ताह तक होता है। बुवाई के समय कतार से कतार की दूरी 30 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 5 से 7 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। बीज की गहराई 3 से 4 सेंटीमीटर होनी चाहिए। - बीज की मात्रा: अलसी की एक एकड़ फसल की बुवाई के लिए 12 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बीजों को बुवाई से पहले फंगस से बचाने के लिए थायराम या कैप्टान 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से मिलाकर बीजोपचार करना चाहिए। - उर्वरकों की मात्रा: अलसी की खेती के लिए निम्नलिखित उर्वरकों की मात्रा का उपयोग करना चाहिए: - निट्रोजन: 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर
प्रेगनेंसी में सौंफ खाने के फायदे आमतौर पर सौंफ का उपयोग माउथ फ्रेशनर के रूप में किया जाता है। इसके अलावा, भारतीय रसोई में सौंफ का उपयोग मसाले के रूप में भी किया जाता है। क्या आप जानते हैं कि आपके किचन की यह छोटी-सी चीज आपको सेहतमंद बनाए रखने में कितनी बड़ी भूमिका निभाती है? कभी सोचा है कि सौंफ खाने के फायदे कितने हैं? अगर नहीं, तो चलिए जानते हैं। सौंफ का वैज्ञानिक नाम फॉनिक्युल वल्गारे (Foeniculum vulgare) है। यह पाचन संबंधी समस्याओं से लेकर आंखों की रोशनी बढ़ाने, वजन कम करने और अन्य समस्याओं से छुटकारा दिलाने में मददगार साबित होती है। स्टाइलक्रेज के इस लेख में हम सौंफ के फायदे बताएंगे। साथ ही यह भी बताएंगे कि सौंफ आपकी सेहत को चुस्त-दुरुस्त बनाए रखने में किस प्रकार से सहायता करती है। पाचन के लिए सौंफ के फायदे सौंफ का उपयोग सबसे अधिक पाचन संबंधी समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए किया जाता है। इसके एंटीस्पास्मोडिक (पेट और आंत में ऐंठन दूर करने वाली दवाई) और कार्मिनेटिव (एक तरह की दवा, जो पेट फूलने या गैस बनने से रोकती है) गुण इरिटेबल बाउल सिंड्रोम जैसी पेट की गंभीर समस्याओं से छुटकार
सहजने का नाम तो सबने सुना होगा जानें सहजन की पत्ती के फायदे सहजन का पेड़ उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों का मूल है और यह सूखे का सामना कर सकता है। इस पेड़ के महत्वपूर्ण भाग इसकी फली, फूल और पत्तियाँ हैं, सहजन पारंपरिक औषधियों का एक प्रमुख तत्व है क्योंकि इसकी फली और पत्तियाँ दोनों ही कई तरह की बीमारियों के इलाज के लिए फायदेमंद हैं। सहजन के पत्ते और फली आमतौर पर दक्षिण भारतीय व्यंजनों में पाए जाते हैं। सहजन की फली का उपयोग कई व्यंजनों में किया जा सकता है, जैसे ड्रमस्टिक करी, सांभर और दाल। सहजन की पत्तियाँ कई हजारों वर्षों से अपने औषधीय गुणों के लिए प्रसिद्ध हैं। प्राकृतिक औषधियों के रूप में सहजन की पत्तियों के फायदे नवीनतम वैज्ञानिक अध्ययनों से भी सिद्ध हो चुके हैं। आइये जानते हैं सहजन की पत्ती के फायदे । सहजन की पत्ती के फायदे सहजन पत्ती के फायदे बहुत हैं और इस पौधे का उपयोग सुंदरता से लेकर विभिन्न बीमारियों को रोकने और उनका इलाज करने में मदद करता है। सहजन के पत्ते के फायदे कुछ इस प्रकार हैं: 1. कैंसर से लड़ता है सहजन के अर्क में ऐसे गुण होते हैं जो कैंसर के विकास को रोकने में सहायता कर
सब्जी की खेती से मालामाल | सालाना 10 लाख की कमाई | नई तकनीक जान आप भी कर सकते हैं कमासब्जी की खेती से मालामाल | सालाना 10 लाख की कमाई | नई तकनीक जान आप भी कर सकते हैं कमाई आज खेती से होने वाली लाखों की कमाई के बारे में जानकारी दे रहे हैं. गांव में आजकल खेती होना किसानों के लिए वरदान साबित हो रहा है. अब किसान खेतों में नोटों की फसल काटने लगे हैं. एक एकड़ में मात्र 40 हजार रूपए खर्च कर 5 लाख तक की कमाई करने वाली बात सबको हैरान कर देगी. पर यह सच है छत्तीसगढ़ और पंजाब के किसान इससे अधिक कमाई कर रहे हैं. सब्जियों की खेती Vegetable farming आइये इसके गणित को समझते हैं. सब्जियों के रेट ने आम लोगों के बजट को जरूर बिगाड़ कर रख दिया हो पर सब्जी के किसान मालामाल हो रहे हैं. समझदार किसान अपने खेत पर सब्जियों की खेती करना पसंद कर रहे हैं. सब्जी की कमाई से अब वे झोपड़ी से पक्के मार्बल वाले मकान तैयार कर उसमें रहने लगे हैं. छत्तीसगढ़ के कंचनपुर के हिटलर प्रधान ने मात्र 3 एकड़ जमीन में बैंगन की खेती कर साल में लगभग 10 लाख की कमाई कर लेते हैं. गांव के अन्य किसान जो पिछले कुछ वर्षो से खेती कर रहे हैं. उनकी म
पपीते की खेती तो एक बीघा में 5 लाख रुपये तक की होगी कमाई पपीता की खेती के लिए कितना हो मिट्टी का पीएच लेवल वैज्ञानिक रामपाल ने बताया कि पपीते की खेती के लिए मिट्टी का पीएच लेवल 6.0 और 7.0 के बीच सबसे अच्छा होता है। जल निकासी की भी पर्याप्त व्यवस्थ्ज्ञा होनी चाहिए। अगर पपीते के खेत में 24 घंटे से अधिक समय तक पानी रुक जाता है तो पौधे मर जाता है, उसे बचाना बेहद मुश्किल हो जाता है। इसलिए पपीता की खेती के लिए किसानों को ऊंची जमीन का चयन करना चाहिए, जहां बारिश का पानी न भरे। खेत में पौधे लगाए, सीधे बीज की बुवाई न करें डॉ. रामपाल ने बताया कि पपीते की खेती के लिए खेत में ऊंचे मेड़ का निर्माण करना चाहिए। पपीते की खेती करने के लिए पौधे किसी ऊंची क्यारी या गमले या पॉलीथिन बैग में तैयार कर लेने चाहिए। जहां पौध तैयार करें, वहां बीज की बुवाई से पहले क्यारी को 10 फीसदी फार्मेल्डिहाइड के घोल का छिड़काव करके उपचारित करना चाहिए। इसके बाद बीज एक सेमी गहरे और 10 सेमी की दूरी पर बोना चाहिए। निराई-गुड़ाई और सिंचाई भी जरूरी डॉ. रामपाल ने बताया कि गर्मियों में पपीते की फसल की हर छह से सात दिन में सिं
इसकी पहली सिंचाई पौधे की रोपाई के तुरंत बाद करें एवं दूसरी सिंचाई 3 से 5 दिन के बाद करें। इसके बाद मौसम और मिट्टी में नमी के हिसाब से सिंचाई की आवश्यकता को देखते हुए समय-समय पर सिंचाई करें। यदि आप सर्दियों के मौसम में फसल प्राप्त करना चाहते हैं, तो उसके लिए आपको गर्मियों के मौसम में इसके पौधों को 3 से 4 बार पानी देना होता है। सर्दियो के मौसम में इसके पौधों को 2 सिंचाई की ही आवश्यकता होती है तथा बारिश के मौसम में इसके पौधों को 2 से 3 बार ही पानी देना होता है। खरपतवार नियंत्रण - अमरुद के खेत में खरपतवार नियंत्रण करने के लिए निराई - गुड़ाई विधि का इस्तेमाल करें। आरंभ में अमरुद के पौधों को अधिक देखरेख की जरूरत होती है। इसलिए इसकी पहली गुड़ाई को पौधों रोपाई के 25 से 30 दिन बाद करें। इसके बाद 10 से 15 दिन के अंतराल में खेत में खरपतवार दिखाई देने पर उसकी गुड़ाई करें। खरपतवार नियंत्रण के लिए ग्रामोक्सोन 6 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें। खरपतवार के अंकुरण के बाद गलाईफोसेट 1.6 लीटर को 200 लीटर पानी में मिलाकर (खरपतवार को फूल पड़ने और उनकी उंचाई 15 से 20 सैं.मी. तक हो जाने से
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