हरी मिर्च की खेती से बने मालामाल
परिचय
मिर्च कैप्सिकम एनम कुल-सोलेनेसी) एक गर्म मौसम का मसाला है जिसके आभाव में कोई सब्जी कितनी ही मेहनत से तैयार किया गयी हो, फीकी होती है। इसका उपयोग ताजे, सूखे एवं पाउडर-तीनों रूप में किया जाता है। इसमें विटामिन ए व सी पाया जाता है।
यह मुख्य रूप से तीन तरह का होता है- मसालों वाली साधारण, आचार वाली व शिमला मिर्च। इसकी कुछ प्रजातियाँ काफी तिक्त व कुछ कम अथवा नहीं के बराबर होती है। इसकी तिक्ता एक रसायन- कैप्सेसीन के कारण होती है जिसका उपयोग औषधि निर्माण के क्षेत्र में भी होता है। इसका चमकीला लाल रंग ‘केप्सैथीन’ नाम रसायन के कारण होता है।
जलवायु
मिर्च गर्म मौसम की सब्जी है। इसकी सफल खेती वैसे क्षेत्रों की जा सकती है जहाँ वार्षिक बारिश 60-150 सेंटीमीटर होती हो। ज्यादा बारिश इसे नुकसान पहुंचाती है। तापक्रम समान्य से ज्यादा एवं कम-दोनों अवस्था में इसके उपज को कम करता है। फूल आने एक समय गर्म एवं सुखी हवा फूल-फल को गिरा कर उपज कम करती है।
मृदा
पोषक तत्वों से भरपूर बलुई-दोमट मिट्टी इसके लिए आदर्श है। मृदा में ऑक्सीजन की कमी इसके उपज को कम करता है। अतः इसके खेतों में जलनिकास की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए।
किस्म
मिर्च – एन. पी, 46 ए, पूसा ज्वाला, पूसा सदाबहार।
शिमला मिर्च- पूसा दीप्ती, अर्का मोहिनी, अर्का गौरव, अर्का बसंत।
आचार मिर्च- सिंधुर ।
कैप्सेसीन उत्पादन हेतु- अपर्ना , पचास यलो।
खेत की तैयारी
4-5 गहरी जुताई और हर बार जुताई के उपरान्त पट्टा देकर खेत को अच्छी तरह तैयार कर लें। इसी समय अच्छी तरह सड़े गोबर की खाद 10 टन प्रति एकड़ के हिसाब से यवहार करें। खाद यदि अच्छी तरह सड़ा न होगा तो दीमक लगने का भय रहेगा।
बिचड़ा के लिए खेत की तैयारी एंव समय
बिचड़ा उगने के लिए नर्सरी की क्यारियाँ ऊँची व जल निकास की सुविधायुक्त होनी चाहिए। इस तरह की क्यारियों की मिट्टी अच्छी जुताई कर भुरभुरी बना लेनी चाहिए।
बरसाती मिर्च की खेती हेतु बीज नर्सरी में मई-जून के महीने में बोनी चाहिए। बिचड़ों की रोपाई मध्य जून से मध्य जुलाई तक कर देनी चाहिए। जाड़े की फसल हेतु बीच बोने का समय नवम्बर महिना है। बिचड़ों की रोपाई फरवरी के दूसरे पखवाड़े में करते हैं।
बीज की मात्रा- 200-400 ग्राम प्रति एकड़
नर्सरी खेत का क्षेत्रफल- एक एकड़ में मिर्च लगाने के लिए बिचड़ा तैयार करने हेतु ढाई डिसमिल जमीन में बीज गिराते हैं।
रोपाई की विधि
4-8 सप्ताह के मिर्च के बिचड़ों की रोपाई समतल खेत में अथवा मेढ़ों पर किया जा सकता है। पंक्तियों के बीच की दुरी 2 फुट तथा पौधों व बीच की दूरी डेढ़ फुट रखते हैं।
रोपाई के पूर्व नर्सरी में बिछड़ों की सिंचाई 15 दिन के अन्तराल पर करनी चाहिए। रोपने के लिए उखाड़ने के एक दिन पूर्व नर्सरी की क्यारियों सिंचाई कर चाहिए। ऐसा करने से जड़ नहीं टूटते। रोपाई हमेशा शाम में अथवा धूप कम रहने या नहीं रहने पर करें। रोपाई के पूर्व व बाद में थालों में पाने दे दें।
नर्सरी में बीच बोने की विधि
बोने के एक दिन पूर्व बीजों को पाने में भिगों देना चाहिए। भिंगोने के पूर्व इन्हें अच्छी तरह हाथों से रगड़ना चाहिए। बीजों को आर्द्रगलन से बचाव हेतु एग्रोसन जी.एन अथवा तूतिया के 1.25% घोल से उपचारित कर लेना चाहिए। बीजों को छिंट कर नहीं, बल्कि पंक्तियों में बोना चाहिए जो निकाई-गुड़ाई एवं बिचड़ा निकालने में सहायता करता है। पंक्तियों की दूरी डेढ़ से दो इंच हो। बीजों की बोवाई के उपरान्त अच्छी तरह सड़े पत्तों से ढँक देना चाहिए। यदि इसकी व्यवस्था न हो तो बालू का उपयोग किया जा सकता है। क्यारियों के चारों तरफ दीमक मार दवाई का एक घेरा बना देना चाहिए। बीज बोआई के ठीक बाद सिंचाई करें।
खाद का प्रयोग
मिर्च की खेती हेतु उचित मात्रा में पोषक तत्वों की उपलब्धता हेतु निम्नांकित खाद प्रति एकड़ (किलोग्राम) निर्द्रिष्ट समय पर प्रयोग करते हैं।
खाद का प्रकार | कार्बनिक | रसायनिक | ||
खाद | कम्पोस्ट | अमोनियम सल्फेट | एस.एस.पी, | एम्.ओ. पी. |
प्रयोग का समय |
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खेत तैयार करते समय | 10 टन |
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अधारिय |
| 225 | 750 | 100 |
मिट्टी चढ़ाते समय (रोपाई से डेढ़ माह बाद) |
| 225 |
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खाद प्रयोग की विधि
- कम्पोस्ट की सम्पूर्ण मात्रा खेत तैयार करते समय देनी चाहिए।
- पौधों की रोपाई के समय पंक्तियों में अमोनियम सल्फेट की आधी व एस.एस.पी. एवं एम्. ओ. पी. की सम्पूर्ण मात्रा प्रयोग करनी चाहिए।
- अमोनियम सल्फेट की बची मात्रा का प्रयोग पौधों के जड़ों पर मिट्टी चढ़ाते समय जो की रोपाई से प्रायः डेढ़ माह बाद किया जाता है।
फसल चक्र व अंतः सस्यन
मिर्च के साथ फसल चक्र में इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि इसमें आलू, बैंगन अथवा टमाटर में से कोई न हों। कद्दूवर्गीय सब्जियों, प्याज या भिन्डी के साथ मिर्च का अंतः सस्यन किया जा सकता है।
सिंचाई
नियमित व सावधानीपूर्वक किया गया सिंचाई अच्छी उपज हेतु जरुरी है। रोपाई के बाद शुरूआती दिनों में नमी की कमी उपज में काफी कमी लाती है। दो सिंचाइयों के बीच का अंतराल मौसम व मृदा के प्रकार पर निर्भर करता है।
निकाई-गुड़ाई
निकाई-गुड़ाई के द्वारा खेत तो खरपतवारविहीन होते ही हैं, साथ ही इनके द्वारा प्रयोग होने वाले पोषक तत्व मिर्च के पौधों द्वारा उपयोग में लाये जाते हैं एवं इनके द्वारा होने वाले रोग व कीट से भी मिर्च का बचाव होता है। दो बार हाथ से निकाई व तीन बार गुड़ाई आवश्यक है। मिट्टी भी दो बार चढ़ाना उचित होता है।
फलों की तुड़ाई
यह इस बात पर निर्भर करता है कि तुड़ाई का मकसद की क्या है? हरी मिर्च हेतु तुड़ाई पुर्णतः तैयार होने के बाद लाल मिर्च होने के पूर्व हरी अवस्था में ही करते हैं। यह प्रायः रोपाई से 30 वें दिन से आरंभ हो जाता है। हरी मिर्च सप्ताह में दो बार तोड़ते हैं। शिमला मिर्च सप्ताह में ही बार तोड़ा जाता है। शुरू में कच्चे फलों की तुड़ाई सिर्फ आमदनी में इजाफा ही नहीं बल्कि पौधों के विकास के साथ उपज भी बढ़ाता है। सूखे लाल मिर्च हेतु तुड़ाई हरे से लाल रंग होने पर प्रायः रोपाई से साढ़े तीन महीनें बाद करते है। तुड़ाई के उपरान्त इन्हें धूप में सुखा लेते हैं। कच्चा फल सूखने में 10-15 दिन समय लगता है। फिर इन्हें सूखे डब्बों में भंडारित कर लेते हैं। तोड़ाई प्रायः दो महीना चलता है और कुल तोड़ाई सूखे मिर्च हेतु छः बार होता है।
उत्पादन
हरी मिर्च | वर्षा आश्रित | 12.6. क्विंटल प्रति एकड़ |
| सिंचित | 30-40 क्विंटल प्रति एकड़ |
सुखी मिर्च | वर्षा आश्रित | 2.4 क्विंटल प्रति एकड़ |
| सिंचित | 6-10 क्विंटल प्रति एकड़ |
बीज उत्पादन
बीज उत्पादन हेतु मिर्च की दो किस्मों के बीच की दुरी कम से कम 400 मीटर रखा जाता है। बीज उत्पादन 2032 किलो प्रति एकड़ होता है।
पादप संरक्षण
कीट | लक्षण | उपचार |
तेला | झालदार पंखों वाला महीन कीट। वयस्व व निम्फ-दोनों पत्तों के टुकड़े-टुकड़े कर देतें हैं। कैप्सिकम में बाह्यादलपुंज के नीचे भी खातें हैं सूखे मौसम में मिर्च की बहुत ही हानिकारक कीट | नुवाक्रान या रोगर 2-3 मी.ली. 0.1 ली. पानी में घोलकर छिड़काव करें। |
बारुथी (माईट) | खुली आँखों से दिखाई नहीं पड़ने वाले सफेद बारुथी। पत्तियां अदंर की ओर मुड़ जाती है। सूखे मौसम में मिर्च की बहुत ही हानिकारक कीट। | केलथेन या रोगर 2-3 मी, ली. 1 ली.पानी में घोलकर छिड़काव करें। |
माहू/लाही | मुलायम पत्तियों व कलिकाओं को खाते हैं | नुवाक्रान या रोगर -23 मी, ली. 0.1 ली. पानी में घोलकर छिड़काव करें। |
फलछेदक | लार्वा फल पत्तियों व कलिकाओं को खाते हैं। | नुवाक्रान 2-3 मी. ली. 01 ली. पानी में घोलकर छिड़काव करें। |
कटुवा (कटवर्म) | रात्री में कीड़े बिचडों को आधार से काट देते हैं। दिन में दरार वैगरह में छिप जाते हैं। | 1 मी. ली. क्लोरपाइरीफॉस1 ली.पानी में घोलकर छिड़काव करें। |
आर्द्रगलन/पादप गलन.डैम्पिंग ऑफ़ | जमीन के पास से तने नर्सरी में से ही गलने लगते हैं। | कैप्टान 2 ग्राम प्रति किलो बीज के हिसाब से बीजोपचार |
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| नर्सरी को कैप्टान या इंडोफिल एम्-45 के 2 ग्राम मात्रा को 1 ली. पाने के घोल से उपचारित कर लें। |
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| बीज की नर्सरी हमेशा बदला करें। |
फल सड़न व् पत्र अंगमारी | फलों पर छोटे जलक्रांत धब्बे बनते हैं जो उन्हें पुर्णतः सड़ा देते अहिं। पत्तों पर जलाक्रांत सफेद धब्बे अंगमारी के रूप में विकसित होते हैं। | रोगरहित बीज का उपयोग। इंडोफिल एम्-45 के 2-3 ग्राम प्रति घोल बीज से बीजोपचार। सड़े फलों को चुनकर नष्ट कर दें। इंडोफिल एम्-45 के 2 ग्राम प्रति ली. पानी में घोलकर 8-10 दिन अंतराल पर छिड़काव करें।
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श्यामवर्ण (एन्थ्रेकनोज) | नीचे से शाखाओं सूखने लगते हैं। शाखाओं पर लाल धब्बे बनते हैं। फलों पर गहरे भूरे या काले पनीले धब्बे बनते हैं। अधिक तापमान और अधिक वर्षा इसके बढ़ने में मदद करते हैं। | रोगरहित फलों से इकट्ठे बीज का प्रयोग। इंडोफिल एम्-45 के 2 ग्राम प्रति किलो बीज से बीजोपचार। सड़े फलों को चुनकर नष्ट कर दें। इंडोफिल एम्-45 के 2 ग्राम प्रति ली. पानी में घोल में छिड़काव करें। ग्रसित पौधों को जमकर जला दें।
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मोजैक | पत्तों पर हरे चितकबरे धब्बे बनते अहिं। |
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