ड्रैगन फ्रूट की खेती से कमाए लाखो


 ड्रैगन ड्रैगन, हिलकोकेरस केक्टेसिया परिवार से संबंधित है। इसे होनोलूलू रानी व पिता के नाम से भी जाना जाता है। सेंट्रा, एम्स, पपीता, केला, सेब आदि की तुलना में अधिक राक्षसी और खतरनाक फल हैं। ड्रैगन ड्रैगन के बाहर से अनानास की आकृति दिखाई देती है, लेकिन मूर्ति से गुडा सफेद और काले छोटे-छोटे साथियों से भरा हुआ खेल या कीवी की तरह होता है। यह आकर्षक एवं रहस्यमयी फल का रंग लाल-कैप्टरी होता है। त्वचा में हरे रंग की कतारें होती हैं, जो ड्रैगन की तरह दिखती हैं, इसलिए ड्रैगन स्पॉट के नाम से भी जाना जाता है।

ड्रैगन रीज़ल अधिकांश मैक्सिको और मध्य एशिया में पाया जाता है। यह फल खाने में तरबूज़ की तरह मीठा होता है। 

ड्रैगन प्रारूप के मुख्य प्रकार 

बाहरी रंग और गुड के आधार पर यह फल मुख्य रूप से तीन प्रकार का होता है

  • गुड़ वाला, लाल रंग का फल 
  • लाल रंग का फल, लाल रंग का फल
  • सफेद वाला गुड़, पीले रंग का फल पोषक तत्व 

ड्रैगन ड्रैगन के प्रति 10 ग्राम समुद्री फल में पाए जाने वाले प्रमुख पोषक तत्व सारणी में दिए गए हैं।

ड्रैगन खिलौने के प्रति 100 ग्राम फलों में पाए जाने वाले प्रमुख पोषक तत्त्व          

मित्र तत्वमात्रा मित्र तत्वमात्रा 
कृपया 85.3 प्रतिशतविटामिन 'ए'  0.01 मिलीग्राम
प्रोटीन 1.10 ग्राम नीनसीन 2.80 मिग्रा
वस 9.57 मिग्रा. कैल्शियम 10.20 मिग्रा
  क्रूड 1.34 मिग्रा. आयोर 3.37 मिलीग्राम
 ऊर्जा 67.70 किलो कैलोरी मैगनीज 38.90 मिग्रा
कार्बोहाइड्रेट 11.2 मिग्रा. फास्टफोर्स 27.75 मिग्रा
ग्लूकोज 5.70 मि.ग्रा. अभी 272.0 मि.ग्रा
फ्रैक्टेज़ 3.20 मिलीग्राम. 8.90 मिग्रा
सोरबिटोल 0.33 मिलीग्राम. ---- 0.35 मिग्रा
विटामिन 'सी' 3.00 मि.ग्रा  

विदेशी फल है ड्रैगन Dragon



ड्रैगन का भारतीय फल नहीं है, लेकिन इसका लाजवाब स्वाद और स्वाद के कारण भारत में भी इसकी मांग काफी बढ़ गई है। यही कारण है कि हमारे देश पंजाब, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में इसका सबसे अधिक उत्पादन होता है। ड्रैगन ड्रैगन का उपाय समुद्री फल के रूप में करने के साथ-साथ रस, जैम और मंत्र के रूप में भी किया जाता है। यह फल खाने में तो स्वादिष्ट लगता है, इसके अलावा इसमें कई गंभीर मसालों को ठीक करने की क्षमता भी होती है।

 थोक की खेती के लिए उष्ण जिसमें जलवायु न्यूनतम वार्षिक वर्षा 50 से.मी. और तापमान 20 से.36 डिग्री सेल्सियस हो, सबसे अच्छा माना जाता है। प्रमाणित के उत्कृष्ट विकास के लिए अरै फल उत्पाद को अच्छी रोशनी और धूप वाले क्षेत्र में ले जाया जाना चाहिए। इसकी खेती के लिए सूर्य की अधिक रोशनी शोभा नहीं देती।

अन्य 

इस फल को लेकर डोमैट विवाह से लेकर विभिन्न प्रकार के विवाहों में शामिल किया जा सकता है। इसकी खेती के लिए कार्बिनक पदार्थ से भरपूर, जल अविष्कार वाली काली सामग्री, जिसका पी-एच मान 5.5 से 7 हो, अच्छा मनी होता है। 

भूमि की तैयारी

खेत अच्छी तरह से जुताई किया हुआ हो, कीट-पतंगों और ज़ारों से मुक्त होना चाहिए। भूमि में 20 से 25 टन प्रति हैक्टर की दर से अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट मिलाप होनी चाहिए। 

प्रवर्धन एवं निर्माण की विधि 

ड्रैगन फ्रूट का प्रवर्धन कटिंग द्वारा होता है, लेकिन इसे बीज से भी लगाया जा सकता है। बीज से लगाने पर यह फल देने में ज्यादा समय लेता है, जो किसान के दृष्टिकोण से सही नहीं है। इसलिए बीज वाली विधि व्यावसायिक खेती के लिए उपयुक्त नहीं है। कटिंग से इसका प्रवर्धन करने के लिए कटिंग की लंबाई 20 सें.मी. रखते हैं। इसको खेत में लगाने से पहले गमलों में लगाया जाता है। इसके लिए गमलों में सूखे गोबर, बलुई मृदा तथा रेत को 1:1:2 के अनुपात से भरकर छाया में रख दिया जाता है। 

अंतरण 

अधिक उत्पादन के लिए पौधे से पौधे एवं पंक्ति से पंक्ति के बीच की दूरी 2×2 मीटर रखते हैं। गड्ढे का आकार 60×60×60 सें.मी. रखते हैं। इन गड्ढों को कम्पोस्ट, मृदा व 100 ग्राम सुपर फाॅस्फेट मिलाकर भर दिया जाता है। 

पादप सघनता 

ड्रैगन फ्रूट से अधिकतम उत्पादन लेने के लिए एक हैक्टर भूमि में लगभग 277 पौधे लगाए जा सकते हैं। ट्रिमिंग व प्रूनिंग पौधों की सीधी वृद्धि एवं विकास के लिए इनको लकड़ी व सीमेंट के खंभों से सहारा प्रदान करना चाहिए। अपरिपक्व पादप तनों को इन खंभों से बांधकर, पाश्र्विक शाखाओं को सीमित रखते हुए दो से तीन मुख्य तनों को बढ़ने के लिए छोड़ देना चाहिए। इसके बाद इसके ढांचे को गोलाकार रूप में सुरक्षित कर लेना चाहिए।

खाद एवं उर्वरक 

अधिक उत्पादन लेने के लिए प्रत्येक पौधे को अच्छी सड़ी हुई 10 से 15 कि.ग्रा. गोबर या कम्पोस्ट खाद देनी चाहिए। इसके अलावा लगभग 250 ग्राम नीम की खली, 30-40 ग्राम फोरेट एवं 5-7 ग्राम बाविस्टिन प्रत्येक गड्ढे में अच्छी तरह मिला देने से पौधों में मृदाजनित रोग एवं कीट नहीं लगते हैं। 50 ग्राम यूरिया, 50 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट तथा 100 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश का मिश्रण बनाकर पौधों को फूल आने से पहले अप्रैल में फल विकास अवस्था तथा जुलाई-अगस्त और फल तुड़ाई के बाद दिसबंर में देना चाहिए। 

सिंचाई 

इस फल के पौधों को दूसरे पौधों की तुलना में कम पानी की आवश्यकता होती है। इस प्रकार रोपण, फूल आने एवं फल विकास के समय तथा गर्म व शुष्क मौसम में बार-बार सिंचाई की आवश्यकता होती है। इसके लिए सिंचाई की बूंद-बूंद पद्धति का उपयोग करना चाहिए। 

कीट एवं व्याधियां

सामान्यतः ड्रैगन फ्रूट में कीट और व्याधियों का प्रकोप कम होता है। फिर भी इसमें एंथ्रेक्नोज रोग व थ्रिप्स कीट का प्रकोप देखा गया है। एंथ्रेक्नोज रोग के नियंत्रण के लिए मैन्कोजेब दवा के घोल का 0.25 प्रतिशत की दर से छिड़काव करें। थ्रिप्स के लिए एसीफेट दवा का 0.1 प्रतिशत की दर से छिड़काव करना चाहिए। 

तुड़ाई 

प्रायः ड्रैगन फ्रूट प्रथम वर्ष में फल देना शुरू कर देता है। सामान्यतः मई और जून में पफूल लगते हैं तथा जुलाई से दिसंबर तक फल लगते हैं। पुष्पण के एक महीने बाद फल तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं। इस अवधि के दौरान इसकी 6 तुड़ाई की जा सकती है। ड्रैगन फ्रूट के कच्चे फल हरे रंग के होते हैं, जो पकने पर लाल रंग में परिवर्तित हो जाते हैं। फलों की तुड़ाई का सही समय रंग परिवर्तित होने के तीन-चार दिनों बाद का होता है। फलों की तुड़ाई दरांती या हाथ से की जाती है। 

उपज 

ड्रैगन फ्रूट का पौधा एक सीजन में 3 से 4 बार फल देता है। प्रत्येक फल का वजन लगभग 300 से 800 ग्राम तक होता है। एक पौधे पर 50 से 120 फल लगते हैं। इस प्रकार इसकी औसत उपज 5 से 6 टन प्रति एकड़ होती है। 

औषधीय गुण

ड्रैगन फ्रूट में अधिक मात्रा में विटामिन ‘सी’, फ्लेवोनोइड औ फाइबर पाए जाने के कारण यह घावों को जल्दी भरने, रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने एवं हृदय संबंधित समस्याओं से बचाने के साथ-साथ भोजन को पचाने में भी सहायक होता है। यह आंखों की दृष्टि में सुधार करने के साथ ही त्वचा को चिकना और मॉयस्चराइज करता है। इसके नियमित सेवन से खांसी और अस्थमा से लड़ने में मदद मिलती है। इसमें विटामिन बी1, बी2 और बी3 पाए जाते हैं, जो ऊर्जा उत्पादन , कार्बोहाइड्रेट विश्लेषण, भूख बढ़ाना, खराब कोलेस्ट्रॉल, पेट के कैंसर और मधुमेह के स्तर को कम करने के अलावा शरीर को ठीक करना शामिल है। दंत स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए भी पारंपरिक औषधीय रूप में प्रयोग किया जाता है।

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