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टमाटर की खेती से केसे बने करोड़पति

 


किसान मित्र टमाटर की खेती (Tamatar Ki khiti) कैसे करें इस विषय पर आज हम चर्चा करेंगे इसलिए इस पोस्ट को अंत तक जरूर पढ़ें

टमाटर की खेती के लिए

टमाटर की खेती के लिए गर्मागर्म और आर्द्र ग्रील्ड सबसे शानदार है। पैकेज का समय अधिक रेन घातक होता है और हीट की फसल के लिए सीना का प्रबंधन बहुत ही कम होता है

टमाटर की खेती की उन्नत खेती

टमाटर ही नहीं अगर हम किसी भी फसल को बो रहे हैं तो अपने उन्नत समकक्षों पर ही अपने उप-विषयों पर निर्भर करता है इसलिए टमाटरों की उन्नत को बोना ही अच्छा होगा।
पूसा रूबी, पूसा हाइब्रिड-4, एच•एस•101, एच•एस•102, एस•12।

संरा टमाटर की दुकान

पूसा शीतल, रूपाली, नाइट्रोजन, अजंता, एन•एच•38।

ग्रीष्म ऋतु की खेती के लिए टमाटर की दुकान

संग्राहक नवीन, पूसा हाइब्रिड-4, एच•एस•102, पूसा हाइब्रिड-1।

टमाटर की खेती के लिए भूमि

टमाटर की खेती के लिए बलुई डोमट भूमि बहुत अच्छी रहती है। लेकिन जल अच्छे अविवाहित वाली सत्तिका डोमट भूमि में टमाटर की अच्छी उपज ली जा सकती है। टमाटर बहुत अधिक अम्लीय तथा बहुत अधिक अम्लीय भूमि में नहीं पाया जाता है। टमाटर की खेती 6 से 7 वर्ष की है। मान वाली भूमि में आराम मिलता है।

टमाटर की खेती के लिए भूमि की तैयारी

एक बार खेत को मिट्टी पलटन हल से जोतने के बाद 3-4 जूता वितरण देशी हल से करना चाहिए। हर जुटाई के बाद महला कुकुर देम। यदि देशी हल की जगह अंतिम 2 से 3 जूटा कल्टीवेस्टर से करें तो खेत जल्दी तैयार हो जाता है और खर्चा भी कम आता है खेत की तैयारी के साथ ही खेत में गोबर की साडी खाद कम्पोस्ट खाद मिट्टी में अच्छी तरह से मिलनी चाहिए।

टमाटर की बर्बादी का समय

मैदानी क्षेत्र में

मैदानी ऑटोमोबाइल में टमाटरों को दो सीज़न में तैयार किया जाता है।

सपने का फल

टमाटर के बीज की पौधशाला जून से जुलाई महीने में बोते हैं।

ग्रीष्मकालीन या बसंत की फसल

टमाटर के बीज को पौधशाला में टमाटर के बीज से लेकर दिसंबर के महीनों में बोटे जाते हैं।

पहाड़ी इलाकों में टमाटर की आकृतियाँ अप्रैल तक होती हैं।

1000 मीटर की दूरी तक.

मैदानी क्षेत्र के समान ही बीज की शुरुआत होती है।

1000 से 2000 मीटर की दूरी तक.

टमाटर के बीज को पौधशाला में फरवरी से मार्च तक बोते हैं।

यहां पर बीज को पौधशाला में मार्च से अप्रैल तक बोते हैं।

टमाटर के बीज की मात्रा.

एक हेक्टेयर भूमि में टमाटर की खेती के लिए बीज की मात्रा 400 से 500 ग्राम तक पर्याप्त है।

टमाटर की चमत्कारी विधि

पौध तैयार करना

सामान्य तौर पर एक ऊंचाई का विस्तार करने के लिए 100 वर्ग मीटर में तैयार किए गए पौध आश्रम में जिस भूमि में पौध तैयार की जाती है, उसे अच्छी तरह से जोड़ाई करके मिट्टी भुरभुरी कर लेनी चाहिए।

पौध की रोटी

जिस खेत में पौध की रोपाई करनी हो उसे अच्छी तरह से तैयार करके सिंचाई के साधन के अनुसार उसमें क्यारियां बना ली जाती हैं. पौध की रोपाई हमेशा ही शाम के समय करनी चाहिए क्योंकि रात के समय गर्मी कम पड़ती है.

Tamatar Ki Kheti के लिए खाद और उर्वरक

टमाटर की अच्छी पैदावार लेने के लिए पोषक तत्वों की उचित मात्रा में आवश्यकता पड़ती है. इसमें नाईट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश मुख्य तत्व हैं और गोबर की सड़ी खाद 200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से खेत तैयार करते समय लगभग 20 से 25 दिन पहले अच्छी तरह से मिला देनी चाहिए टमाटर की अच्छी फसल के लिए 100 किलोग्राम नाइट्रोजन 60 किलोग्राम फास्फोरस तथा 60 किलोग्राम पोटाश की आवश्यकता प्रति हेक्टेयर‌ पड़ती है.

टमाटर की फसल के लिए सिंचाई

टमाटर की फसल में सिंचाई इस प्रकार करनी चाहिए की जमीन में लगातार पर्याप्त नमी बनी रहे टमाटर में अधिक सिंचाई हानिकारक होती है क्योंकि इससे पौधे अधिक बढ़ते हैं और फूल गिर जाते हैं पहली सिंचाई रोपाई के तुरंत बाद करनी चाहिए इसके बाद सर्दियों की फसल में 20 से 25 दिन के पश्चात और वसंत की फसल में 10 दिन के अंतर पर सिंचाई करनी चाहिए कभी-कभी सर्दियों के मौसम में खेत में सिंचाई करने के 2 से 4 दिन बाद ही बारिश हो जाती है बारिश के पानी को खेत से बाहर निकाल देना चाहिए अन्यथा फसल को भारी नुकसान पहुंच सकता है.

टमाटर की खेती में खरपतवार तथा उनका नियंत्रण:-

टमाटर के खेत में खरपतवार निकालना बहुत ही जरूरी है क्योंकि इनके रहने से फसल पर बहुत कीड़ों का तथा बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है खरपतवार भूमि से नमी ,पोषक तत्व, सूर्य के प्रकाश के लिए फसल के पौधों के साथ संघर्ष करते हैं वैसे तो खरपतवारों को निकाई गुड़ाई करके निकाला ही जाता है लेकिन टमाटर की फसल में खरपतवार नाशक दवाओं के प्रयोग से भी खरपतवार का नियंत्रण किया जाता है रोपाई के तुरंत बाद 0.5 सिंकार किलोग्राम सक्रिय अवयव को 800 लीटर पानी में घोलकर खेत में छिड़काव करने पर खरपतवार कम उगते हैं और अधिक नियंत्रण के लिए किसी अनुभवी से परामर्श जरूर करें।

टमाटर की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग तथा उनका नियंत्रण:-

आर्द्र पतन:

यह रोग अधिकतर सभी प्रकार की सब्जियों में लगता इसे पौधगलन रोग भी कहते हैं यह फफूंद के कारण पैदा होता है।

रोकथाम-

नर्सरी के लिए बलुई मिट्टी का चुनाव करना चाहिए जिसमें पानी के निकास का सही प्रबंध हो।
टमाटर के बीज को कैप्टान या थायराम नामक फफूंदी नाशक दवा से 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए।

फल विगलन:

यह रोग उत्तरी भारत, विशेष रुप से पहाड़ी भागों में अधिक पाया जाता है यह फाइटोप्थोरा नामक फफूंद के कारण होता है इस रोग की शुरुआत में हल्के पीले सकेंद्र वाले धब्बे पड़ जाते हैं इसमें फल का छिलका नहीं गलता है लेकिन फल के भीतरी केंद्र तथा गूदा बेरंग हो जाता है यह धब्बे धीरे-धीरे फल के अधिकांश भाग को ढक लेते हैं।

रोकथाम-

सही से फसल चक्र तथा खरपतवार नियंत्रण करना चाहिए पछेती झुलसा के लिए जो रसायनों का छिड़काव होता है वही इस रूप में भी रोकथाम करता है।

टमाटर की फसल में लगने वाले प्रमुख कीड़े तथा उनका नियंत्रण:-

कटुआ कीट:

मटमैले रंग की गिन्डारे रात में निकल कर पौधों को जमीन की सतह से काटकर गिरा देती है तथा दिन के समय भूमि की दरारों तथा मिट्टी के ढेलों के नीचे छिपी रहती हैं।

रोकथाम-

इस कीड़े की रोकथाम के लिए खेत में पौधे की रोपाई से पहले एल्ड्रिन 5% धूल या हेप्टाक्लोर 5% धूल को 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि में अच्छी प्रकार से मिला देना चाहिए।

फल बेधक:

इस कीड़े का आक्रमण मार्च-अप्रैल में होता है तथा यह टमाटर को बहुत नुकसान पहुंचाता है।

रोकथाम-

इसका प्रकोप कम करने के लिए जब फसल में फूल आना शुरू हो तभी सेविन घुलनशील धूल का 0.2 प्रतिशत का घोल अथवा सुमिसीडीन का 0.15 प्रतिशत घोल का 10 से 15 दिन के अंतर पर छिड़काव करते रहें।

टमाटर के पौधों को सहारा देना:-

जबकि पौधों को सहारा देने से उत्पादन खर्च में थोड़ी सी वृद्धि होती है लेकिन फिर भी अच्छे आकार रंग तथा प्रति हेक्टेयर अधिक उपज लेने के लिए पौधों को सहारा देना बहुत जरूरी है पौधों को सहारा देने के लिए अरहर या ढैंचा आदि की लकड़ियों के छोटे-छोटे टुकड़ों (लगभग 1मीटर लम्बे) को 15 सेंटीमीटर की दूरी पर भूमि में गाड़ कर पौधों को उनसे बांध दिया जाता है ताकि पौधे सीधे खड़े रहे और फल भूमि को न छुएं ऐसा करने पर जमीन व जल से लगने वाली बीमारियों और कीड़ों से फल बचे रहते हैं और फल खराब भी नहीं होते हैं.

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टमाटर को फटने से रोकने के उपाय:-

टमाटर की फसल में फल फटने की समस्या बहुत ही गंभीर है टमाटर देर से और गहरी सिंचाई से फट जाते हैं तापमान का प्रभाव भी फल फटने के ऊपर पड़ता है बोरान की कमी से भी टमाटर फटते हैं।

टमाटर को फटने से रोकने के लिए उपाय:

  • टमाटर के पौधों के साथ टेक लगाएं।
  • फसल की नियमित रूप से व हल्की सिंचाई करें।
  • 800 ग्राम बोरेक्स को 550 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें।

टमाटर की तुड़ाई:-

टमाटर की फल डंठल को थोड़ा सा मोड़ कर झटके से तोड़े जाते हैं दूर के बाजारों में भेजने के लिए टमाटर की तुड़ाई फल पकने के लगभग 10 से 15 दिन पहले ही करनी चाहिए जब फलों का निचला भाग थोड़ा सा लाल हो जाए तब, ऐसे फल देखने में हरे होते हैं।परंतु पूर्ण विकसित होते हैं और कुछ दिनों में जब तक बाजार में पहुंचते हैं तब तक पककर लाल रंग के हो जाते हैं स्थानीय बाजारों में भेजने के लिए हल्के लाल या गुलाबी रंग के टमाटर तोड़े जाते हैं घरेलू उपभोग या कच्चा खाने के लिए टमाटरों को उस समय तोड़ा जाता है जब फलों का छिलका गहरे रंग का हो जाता है।

टमाटर की फसल की उपज:-

मौसम तथा किस्म के अनुसार उन्नत तौर तरीकों से उगाई गई फसल से 250 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार मिल जाती है संकर टमाटर की उपज 600 से 700 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक होती है.

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टमाटर के विपणन हेतु तैयारी:-

टमाटर को तोड़ने के बाद फलों को अलग-अलग श्रेणी में विभक्त कर लेना चाहिए कटे-फटे, गले व क्षतिग्रस्त फलों को निकालकर अलग कर देना चाहिए इसके बाद फलों को टोकरियों में सजाकर बाजार में भेजना चाहिए।

टमाटर का भंडारण:-

पके हुए टमाटर के भंडारण के लिए सबसे अच्छा तापमान 12 से 15 डिग्री सेल्सियस के बीच होता है इस तापमान पर पके हुए फलों को बड़ी आसानी से 1 सप्ताह तक सुरक्षित रखा जा सकता है अधपके फलों को 10 से 15 डिग्री सेल्सियस तापमान पर लगभग 30 दिन तक सुरक्षित रख सकते हैं भंडारण के लिए 85 से 90% आपेक्षिक आर्द्रता होनी चाहिए.

टमाटर का बीज उत्पादन:-

टमाटर मुख्य रूप से स्वयं सेंचित फसल है इसमें कुछ प्रतिशत परसेंचन भी हो सकता है इसलिए बीज उत्पादन के लिए उगाई गई फसल को टमाटर की अन्य फसलों के खेतों से लगभग 50 मीटर की दूरी पर उगाना चाहिए अनुवांशिक रूप से शुद्ध तथा उच्च कोटि के बीज प्राप्त करने के लिए रोग तथा कीट नियंत्रण के लिए फसल सुरक्षा कार्यक्रम पूर्ण रुप से अपनाना जरूरी होता है बीज की फसल का कम से कम 3 बार ध्यान पूर्वक निरीक्षण करना चाहिए और खेत में उगे हुए अवांछित प्रकार के पौधों को उखाड़कर गड्ढे में दबा देना चाहिए रोगी पौधों को भी उखाड़ कर गढ्ढे में दबाना बहुत ही जरुरी होता है। जब फल पूरी तरह से पक जाते हैं तो मुख्य रूप से टमाटर के बीज उत्पादन के लिए 3 विधियां अपनाई जाती हैं।

  • किण्वन विधि (Fermentation Method)
  • क्षार द्वारा उपचार विधि (Alkali Treatment)
  • अम्लोपचार विधि (Acid Treatment Method)

किसान भाईयों आज के इस लेख में आपने टमाटर की खेती के बारे में विस्तार से जाना अगर आप ऐसे ही और खेतियों की विस्तार से जानकारी जानना चाहते हैं और कृषि से संबंधित कुछ भी जानकारी जानना चाहते हैं

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